भारत में ई-कॉमर्स कारोबार वर्ष 2020 तक छह गुणा बढ़कर 100 अरब डॉलर यानी 6 लाख करोड़ रुपए के पार पहुंच जाएगा। उद्योग संगठन सीआईआई ने बाजार अध्ययन कंपनी डिलॉयट के साथ मिलकर किए गए एक अध्ययन की रिपोर्ट साझा करते हुए कहा कि वर्ष 2015 के अंत तक देश का ई-कॉमर्स कारोबार 16 अरब डॉलर का था। अगले पांच साल में 2020 के अंत तक यह 101.9 अरब डॉलर का हो जाएगा। उसने बताया कि इसकी सफलता के पीछे मुख्य कारण सतत नवाचार, प्रक्रियाओं को डिजिटलीकरण तथा स्मार्टफोनों, मोबाइल डिवाइसों तथा इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की संख्या में बढ़ोतरी है। रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2013 में भारतीय ई-कॉमर्स बाजार 2.9 अरब डॉलर का था। साल 2014 में यह 13.6 अरब डॉलर तथा 2015 में 16 अरब डॉलर का हो गया। वर्ष 2018 में इसके 40.3 अरब डॉलर तथा 2020 में 101.9 अरब डॉलर का होने का अनुमान है। मध्यम वर्गीय ग्राहकों की संख्या 41 प्रतिशत बढ़ चुकी है तथा खरीददारी की आदतों में बदलाव के कारण आॅनलाइन खरीददारी करने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। इस कारण कोई भी समान आॅनलाइन बुक (online books )कराने वाले और खरीददारों की संख्या 2013 के दो करोड़ से बढ़कर 2015 में तीन करोड़ 90 लाख पर पहुंच गई। एक क्लिक करते ही वैश्विक उत्पादों जैसे ऑनलाइन किताबें खरीदना (buy books online), मोबाइल बुक कराना सहित सुई से लेकर घर तक की उपलब्धता तथा सूदुर इलाकों में भी डिलिवरी की संभाव्यता के कारण वर्ष 2018 में इसके 14 करोड़ तथा 2020 में 22 करोड़ पर पहुंचने की उम्मीद है। देश के कुल मोबाइल उपभोक्ताओं में फिलहाल 11 प्रतिशत ही आॅनलाइन शॉपिंग करते हैं। इनका प्रतिशत 2018 में बढ़कर 25 पर तथा 2020 में 36 पर पहुंचने की उम्मीद है। संख्या के साथ-साथ प्रत्येक ग्राहक की खरीददारी की राशि भी बढ़ने की उम्मीद है। अभी जहां हर आॅनलाइन ग्राहक औसतन साल में 247 डॉलर की खरीददारी करता है, वहीं 18 प्रतिशत की चक्रवृद्धि दर से बढ़ती हुई 2020 में उनकी खरीददारी बढ़कर 464 डॉलर सालाना हो जाएगी। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमिताभ कांत ने भी शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा था कि वर्ष 2023 तक दुकानों और मॉलों की चाहरदीवारी से होने वाला कारोबार अपने मौजूदा स्वरूप में समाप्त हो जाएगा और देश का ई-कॉमर्स बाजार बढ़कर 300 अरब डॉलर का हो जाएगा।
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Friday 29 April 2016
Wednesday 20 April 2016
‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर कुछ नया करने का प्रयास करें
‘विश्व पुस्तक दिवस’ का उद्देश्य विश्व भर के लोगों को, और खासकर युवाओं को, पठन-पाठन का आनंद उठाने की प्रेरणा देना है। साथ ही इस दिवस का उद्देश्य उन सभी लेखकों के लिए आदर का भाव जगाना है, जिन्होंने मानवता की सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति में सहयोग दिया है। इसलिए 23 अप्रैल को विश्व साहित्य के प्रतीक दिवस के रूप में ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाया जाता है। इसी दिन वर्ष 1616 में सवंर्तेस, शेक्सपियर और इन्का गर्सिलासो दे ला वेगा की मृत्यु हुई थी। यह दिन कई और प्रमुख लेखकों का भी जन्म या फिर मरण दिवस है। विश्व भर के लेखकों को सम्मान देने के लिए इस दिन का चयन किया जाना एक स्वाभाविक कदम था। इसी दिशा में कदम उठाते हुए, यूनेस्को ने विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस की स्थापना की। लेकिन यूनेस्को के उद्देश्य से पूरा विश्व ही भटक गया था। लोग किताबों से दूरी बनाने लगे थे। लेकिन आॅनलाइन बुक्स (online books) स्टोर्स ने इस दूरी को कम करने में बहुत ही मदद की है। अब लोगों कि पहुंच किताबों तक आसानी से और लोग आनलाइन बुक्स स्टोर से किताबें खूब खरीद (buy books online) रहे हैं। वैसे इसके लिए कुछ अलग से करने की जरूरत है। वैसे किताबें बच्चों में अध्ययन की प्रवृत्ति, जिज्ञासु प्रवृत्ति, सहेजकर रखने की प्रवृत्ति और संस्कार रोपित करती हैं। पुस्तकें न सिर्फ ज्ञान देती हैं, बल्कि कला, संस्कृति, लोकजीवन, सभ्यता के बारे में भी बताती हैं। ऐसे में पुस्तकों के प्रति लोगों में आकर्षण पैदा करना जरूरी हो गया है। इसके अलावा तमाम बच्चे गरीबी के चलते भी पुस्तकें नहीं पढ़ पाते, इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों के लिए विभिन्न जानकारियों व मनोरंजन से भरपूर पुस्तकों की प्रदर्शनी जैसे अभियान से उनमें पढ़़ाई की संस्कृति विकसित की जा सकती है।
वैसे इंसान के स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है जब तक उसकी आंखे धुंधली नहीं हो जाती। लेकिन आज कम्प्यूटर और इंटरनेट के प्रति बढ़ती दिलचस्पी के कारण पुस्तकों से लोगों की दूरी घटती जा रही है। आज के युग में लोग इंटरनेट के माध्यम से किताबें खरीद रहे हैं। लेकिन दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इंटरनेट के कारण किताबों के प्रति लोगों का रुझान कम हुआ है और किताब और किताब प्रेमियों के बीच यह दूरी और बढ़ी है। यही कारण है कि लोगों और किताबों के बीच की दूरी को पाटने के लिए यूनेस्को ने ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाने का निर्णय लिया। पहली बार 23 अप्रैल, 1995 को ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाया गया था। बाद में यह हर देश में व्यापक होता गया। किताबों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इसके बारे में बताने के लिए ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर विभिन्न शहरों में कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
वैसे भारत में ‘सभी के लिए शिक्षा कानून’ को इसी दिशा में देखा जा रहा है। जागरुकता अभियान लोगों में पुस्तक प्रेम को जागृत करने के लिए मनाये जाने वाले ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर जहां स्कूलों में बच्चों को पढ़़ाई की आदत डालने के लिए सस्ते दामों पर पुस्तकें बांटने जैसे अभियान चलाये जा सकते हैं, वहीं स्कूलों या फिर सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनियां लगाकर पुस्तक पढ़ने के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। स्कूली बच्चों के अलावा उन लोगों को भी पढ़़ाई के लिए जागरूक किया जाना जरुरी है जो किसी कारणवश अपनी पढ़़ाई छोड़ चुके हैं। पुस्तकालय इस सम्बन्ध में अहम भूमिका निभा सकते हैं, बशर्ते उनका रख-रखाव सही ढंग से हो और स्तरीय पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएं वहां उपलब्ध कराई जाएं। इस ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर आप भी संकल्प करें की लोगों को किताबों की प्रति रुचि बढ़ाने के लिए कई प्रयास करेंगे।
Sunday 17 April 2016
Yourbookstall.com I Buy Books Online, Publish Your Book, Sell Old Books: भारत में तेजी से फलता-फूलता ई-कमर्स
Yourbookstall.com I Buy Books Online, Publish Your Book, Sell Old Books: भारत में तेजी से फलता-फूलता ई-कमर्स: ब्रिटेन माइकल अलड्रीच ने 1979 में जब ई-कमर्स का कॉन्सेप्ट दिया होगा तो उसने भी नहीं सोचा होगा की पूरी दुनिया का कमर्स ई-कमर्स की ओर देखने ल...
Saturday 16 April 2016
ई-बुक से होंगे बच्चों के कंधे हल्के
कभी-कभी सरकार की पहल आपकी समस्या बढ़ती है तो कभी आपको समस्याओं से मुक्ति की पहल करती है। ऐसा ही एक पहल केंद्र सरकार ने की है जिससे बच्चों के कधें से बस्ते का बोझ हल्का होगा। नेशनल काउंसिल फॉर एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीईआरटी) ने हाईटेक तकनीक अपनाते हुए ई-बुक कॉन्सेप्ट लॉन्च करने की योजना बनाई है। एनसीईआरटी ने ई-बुक कॉन्सेप्ट पहली बार अपनाई है। इस कॉन्सेप्ट के तहत मोबाइल से एनसीईआरटी की आनलाइन बुक्स डाउनलोड की जा सकेंगी। इससे पहले भी एनसीईआरटी बुक का मोबाइल एप्लिकेशन उपलब्ध था, लेकिन उसे प्राइवेट कंपनियों द्वारा संचालित किया जा रहा था। ई-बुक (e books)मोबाइल एप्प जून के पहले हफ्ते में भी लॉन्च किए जाने की योजना है। वर्तमान में एनसीईआरटी की किताबें पीडीएफ फॉर्म में उपलब्ध हैं। लेकिन इसे देखने में छात्रों को परेशानी होती है। इन्ही समस्याओं से निजात दिलाने व हाईटेक तरीके से बुक्स उपलब्ध कराने के लिए कॉन्सेप्ट को अपनाया गया है। इस एप में छात्रों की पढ़ाई से जुड़ी हर समस्याओं का ध्यान रखा गया है। ई-बुक का यह कॉन्सेप्ट डिजिटल लाइब्रेरी के तौर पर काम करेगा। इसमें जिस विषय की बुक्स के बारे में आप सर्च करें वह किताब आपको दिखाई देगी। साथ ही इसमें कई ऐसे टूल्स होंगे जो आपको बुक्स को आसानी से ढूंढने में आपकी सहायता करेंगे। अगर कोई छात्र किसी शब्द या पूरे वाक्य का मतलब नहीं समझ रहा है तो उसके पास आॅप्शन होगा जहां से क्लिक करके उस शब्द या वाक्य का मतलब समझा जा सकता है। यह एप छात्रों को मुफ्त में उपलब्ध कराई जाएंगी। ई-बुक्स को आॅनलाइन बुक्स (online books)मुफ्त में डाउनलोड करके अपने मोबाइल, पीसी, या लैपटॉप में आसानी से पढ़ा जा सकेगा।
Tuesday 5 April 2016
जेल में लिखी गर्इं किताबें...
जेल में किताब लिखने की परंपरा सदियों पुरानी है जो आज भी बद्स्तूर जारी है और आगे भी जारी रहेगा। अगर हम भारतीय इतिहास की बात करें तो महत्मा गांधी से लेकर भगत सिंह ने आपनी जेल यात्रा और स्वतंत्रता को लेकर ‘जेल डायरी’ लिखी जो बाद में हमारे सामने किताबों की रूप में आर्इं। अगर हम बड़ी किताबों की बात करें तो उसमें बाल गंगाधर तिलक की ‘गीता रहस्य’ और जवाहरलाल नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी आॅफ इंडिया’ को शामिल किया जा सकता है, जिसने देश, समाज और युवाओं को नई दिशा दी है।
दूसरी ओर कई अपराधियों ने भी किताबें लिखी हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक अपराधी ने जेल में ही 9 किताबें लिख डाली थी। इसके अलावा भी कई ऐसे लोगा हैं जिन्होंने जेल में रहते हुए किताबें लिखी हैं। फरवरी में ही पिछले दो सालों से जेल की छोटी सी सेल में बेहद मामूली चीजों के सहारे जीवन बीता रहे सहारा प्रमुख सुब्रत राय की किताब का विमोचन जेल में ही हुआ। किताब के विमोचन के लिए उन्होंने अपने कंपनी सहारा का 39वां स्थापना दिवस चुना। सहारा प्रमुख ने तिहार जेल में न्यायिक हिरासत में रहते हुए अपनी तीन किताबों की सीरीज ‘थॉट फ्रॉम तिहार’ के पहले पार्ट ‘लाइफ मंत्रास’ को लिखा है।यह किताबें आॅनलाइन बुक्स (online books) स्टोर पर खूब बिक रही हैं और लोग भी इसे बाई बुक्स आॅनलाइन (buy books online) खूब खरीद रहे हैं। दूसरी ओर जेल में किताब लिखने को लेकर संजय दत्त भी चर्चा में हैं। मार्च में रिहा होने के बाद उन्होंने यह बात बताई। जेल में संजय दत्त ने अपनी दिनचर्या के अलावा अपने जीवन के अनुभवों को लिखने में भी उन्होंने खुद को व्यस्त रखा। अब उनके इन अनुभवों ने एक किताब का रूप ले लिया है। मुंबई बम विस्फोट मामले में जेल की सजा काटने के बाद हाल में रिहा हुए 56 वर्षीय अभिनेता ने दो कैदियों के साथ मिलकर 500 से अधिक ‘शेर’ लिखे हैं और अब वह अपने इस काव्य संग्रह को ‘सलाखें’ नाम की एक किताब के रूप में प्रकाशित करवाना चाहते हैं। दत्त ने कहा, मैंने कुछ लिखा है और मैं इस किताब ‘सलाखें’ को जारी करूंगा। हम इसे कुछ लोगों (प्रकाशकों) को दिखाएंगे। जिशान कुरैशी, समीर हिंगल नाम के दो कैदियों के साथ मैंने 500 शेर लिखे हैं। वे दोनों रेडियो स्टेशन में मेरे साथ थे। ये सभी शेर हिंदी में लिखे गये हैं।
दूसरी ओर कई अपराधियों ने भी किताबें लिखी हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक अपराधी ने जेल में ही 9 किताबें लिख डाली थी। इसके अलावा भी कई ऐसे लोगा हैं जिन्होंने जेल में रहते हुए किताबें लिखी हैं। फरवरी में ही पिछले दो सालों से जेल की छोटी सी सेल में बेहद मामूली चीजों के सहारे जीवन बीता रहे सहारा प्रमुख सुब्रत राय की किताब का विमोचन जेल में ही हुआ। किताब के विमोचन के लिए उन्होंने अपने कंपनी सहारा का 39वां स्थापना दिवस चुना। सहारा प्रमुख ने तिहार जेल में न्यायिक हिरासत में रहते हुए अपनी तीन किताबों की सीरीज ‘थॉट फ्रॉम तिहार’ के पहले पार्ट ‘लाइफ मंत्रास’ को लिखा है।यह किताबें आॅनलाइन बुक्स (online books) स्टोर पर खूब बिक रही हैं और लोग भी इसे बाई बुक्स आॅनलाइन (buy books online) खूब खरीद रहे हैं। दूसरी ओर जेल में किताब लिखने को लेकर संजय दत्त भी चर्चा में हैं। मार्च में रिहा होने के बाद उन्होंने यह बात बताई। जेल में संजय दत्त ने अपनी दिनचर्या के अलावा अपने जीवन के अनुभवों को लिखने में भी उन्होंने खुद को व्यस्त रखा। अब उनके इन अनुभवों ने एक किताब का रूप ले लिया है। मुंबई बम विस्फोट मामले में जेल की सजा काटने के बाद हाल में रिहा हुए 56 वर्षीय अभिनेता ने दो कैदियों के साथ मिलकर 500 से अधिक ‘शेर’ लिखे हैं और अब वह अपने इस काव्य संग्रह को ‘सलाखें’ नाम की एक किताब के रूप में प्रकाशित करवाना चाहते हैं। दत्त ने कहा, मैंने कुछ लिखा है और मैं इस किताब ‘सलाखें’ को जारी करूंगा। हम इसे कुछ लोगों (प्रकाशकों) को दिखाएंगे। जिशान कुरैशी, समीर हिंगल नाम के दो कैदियों के साथ मैंने 500 शेर लिखे हैं। वे दोनों रेडियो स्टेशन में मेरे साथ थे। ये सभी शेर हिंदी में लिखे गये हैं।
Saturday 2 April 2016
सबसे विवादित किताबों पर एक नजर...
कलम की ताकत से दुनिया का हर पढ़ा लिखा व्यक्ति परचित है। चाहे वह नारा हो, लेख हो या कोई किताब। वह समाज को एक नई दिशा देती है, सच्चाई बताती है, विवाद, वैमन्स्य, खड़ा करती और समाज को भटकाती भी है। कागज पर उकेरे बहुत कम ही ऐसे शब्दों की पोटलियां रही जिससे नाकारात्मकता फैलाने की कोशिश की गई। यहां हम कुछ ऐसे ही किताबों की चर्चा करेंगे जिन्हें विवाद के कारण प्रतिबंध लगा दिया गया। भले ही उस समय उन किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो लेकिन आज वह किताबें आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) पर उलब्ध हैं जहां से कोई भी बाई बुक्स आॅनलाइन (buy books online) खरीद सकता है। लेकिन विवाद किस कारण हुआ यह हम आपको बताते हैं।
पिक्टन: इन हिज ओन वड्स
लेखक :- रॉबर्ट पिक्टन
कई हत्याएं करने वाले कनाडा के रॉबर्ट पिक्टन ने अपने अनुभव के आधार पर ‘पिक्टन: इन हिज ओन वर्ड्स’ एक किताब लिखी।
इस किताब पर विवाद के प्रतिबंध लगा दिया और बाजार में आने के कुछ घंटे के बाद ही उसे आॅनलाइन बुक्स स्टोरों से हटा दिया गया। सूअर फार्म चलाने वाले और किसी जमाने में करोड़पति रहे रॉबर्ट पिक्टन ने एक के बाद एक छह हत्याएं की थीं। उन्हें साल 2007 में सजा भी सुनाई गई थी।
इफ आई डिड इट: कनफेशन्स आॅफ द किलर
लेखक :- ओजे सिम्पसन (आनाम लेखक)
अमेरिकी फुटबॉल खिलाड़ी ओजे सिम्पसन को 1994 में अपनी पूर्व पत्नी निकोल ब्राउन और उनके मित्र रोनैल्ड गोल्डमैन की हत्या के आरोप से बरी कर दिया गया था। उनकी किताब ‘इफ आई डिड इट: कनफेशन्स आॅफ द किलर’ साल 2007 में छप कर बाजार में आई।
इसमें बताया गया था कि किस तरह ये हत्याएं की गई होंगी। सिम्पसन ने किसी और से यह किताब लिखवाई थी और इससे पैसे भी कमाए थे। किताब से दोनों पीड़ितों के रिश्तेदारों को ठेस पहुंची। इसके पहले उन्होंने सिम्पसन के खिलाफ एक मुकदमा जीत लिया था। उन्हें मुआवजे के तौर पर 3 करोड़ डॉलर की रकम दी गई थी। सिम्पसन फिलहाल जेल में हैं। वे अपहरण और डकैती के दोष में 33 साल की सजा काट रहे हैं।
लोलिता
लेखक :- व्लादीमीर नबोकोव
बीसवीं सदी की सबसे विवादास्पद किताबों में एक है लोलिता। यह किताब 1955 में प्रकाशित हुई थी। व्लादीमीर नबोकोव द्वारा लिखी यह किताब एक अधेड़ आदमी हम्बर्ट और 12 साल की लड़की डोलोरस हेज के रिश्ते पर आधारित है। इसमें लेखक ने एक बच्ची के प्रति अपने प्यार के बारे में विस्तार से बताया है।
इसलिए कोई प्रकाशक इसे छापने को तैयार नहीं था। आखिरकार, पेरिस की एक ऐसी कंपनी ने इसे छापा, जो पोर्नोग्राफी छापा करती थी। किताब के आने के बाद उस पर ब्रिटेन और फ्रांस में प्रतिबंध लगा दिया गया। ब्रिटेन में यह रोक 1959 तक रही। इसकी अब तक पांच करोड़ प्रतियां छप चुकी हैं।
द सैटेनिक वर्सेज
लेखक :- सलमान रुश्दी
भारतीय मूल के ब्रितानी लेखक सलमान रुश्दी की साल 1988 में छपी किताब में इस्लाम की आलोचना की गई है। इसके बाद कुछ लोगों ने रुश्दी की हत्या करने वाले को दस लाख पाउंड का इनाम देने का ऐलान किया था। इस किताब पर मुस्लिम जगत में हंगामे हुए। ईरान के सर्वोच्च धार्मिक गुरु अयातुल्ला खोमैनी ने फतवा जारी कर रुश्दी को मौत की सजा सुना दी थी। ईरानी समाचार एजेंसी 'फारस' के मुताबिक, 40 सरकारी मीडिया कंपनियों ने इस किताब के लेखक को मारने के लिए साझे तौर पर 6 लाख डॉलर की रकम की पेशकश की है। सलमान रुश्दी दस साल तक छिपे रहे। उनकी किताब पर आज भी भारत और कई मुस्लिम बहुल देशों में प्रतिबंध लागू है।
माइन काम्फ: माई स्ट्रगल
लेखक :- एडोल्फ हिटलर
जर्मनी में नस्लवादी नाजियों के नेता एडोल्फ हिटलर की किताब ‘माइन काम्फ: माई स्ट्रगल’ साल 1925 में छप कर आई थी। ये नाजियों के घोषणापत्र जैसा था। हिटलर ने म्युनिख में सत्ता हथियाने की नाकाम कोशिश करने के आरोप में देशद्रोह की सजा काटते समय जेल में यह किताब लिखी थी। एक दशक बाद जब नाजी सत्ता में आए तो इस किताब की धूम मच गई।
सरकार नव विवाहितों को यह उपहार में देने लगी। बड़े अधिकारियों के घरों में इसकी सोने की पत्तियों से मढ़ी प्रतियां रखी जाने लगीं। उस दौरान इस किताब की 1 करोड़ 20 लाख प्रतियां छपी हैं। नाजिÞयों की हार के बाद 1945 में इस किताब की कॉपीराइट बैवेरिया राज्य को सौंप दी गई। इस पर किताब पर 70 साल तक प्रतिबंध लगा रहा। यह कॉपीराइट 1 जनवरी 2016 को खत्म हो गई। म्युनिख का इंस्टीच्यूट आॅफ कंटेपरेरी हिस्ट्री अब इसका नया संस्करण छापेगा।
आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंग्स
लेखक :- माया एंजेलो
साल 1970 में छपी माया एंजेलो की किताब ‘आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंग्स’ उनके अनुभवों पर आधारित है। इसमें अमरीका के गरीब इलाके डीप साउथ में एक बच्चे पर होने वाले अत्याचार और दुर्व्यवहार का वर्णन है। माया ने अपने बचपन के 10 साल वहां बिताए।
उन्होंने वहां नस्ल के आधार पर होने वाले भेदभाव और पूर्वग्रहों के बारे में बताया। इस किताब में वर्णन है कि किस तरह सात साल की उस बच्ची से उसकी मां का ब्वॉय फ्रेंड बलात्कार करता है।
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