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Friday, 29 April 2016
पांच साल में 100 अरब डॉलर का होगा ई-कॉमर्स कारोबार

Wednesday, 20 April 2016
‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर कुछ नया करने का प्रयास करें

‘विश्व पुस्तक दिवस’ का उद्देश्य विश्व भर के लोगों को, और खासकर युवाओं को, पठन-पाठन का आनंद उठाने की प्रेरणा देना है। साथ ही इस दिवस का उद्देश्य उन सभी लेखकों के लिए आदर का भाव जगाना है, जिन्होंने मानवता की सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति में सहयोग दिया है। इसलिए 23 अप्रैल को विश्व साहित्य के प्रतीक दिवस के रूप में ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाया जाता है। इसी दिन वर्ष 1616 में सवंर्तेस, शेक्सपियर और इन्का गर्सिलासो दे ला वेगा की मृत्यु हुई थी। यह दिन कई और प्रमुख लेखकों का भी जन्म या फिर मरण दिवस है। विश्व भर के लेखकों को सम्मान देने के लिए इस दिन का चयन किया जाना एक स्वाभाविक कदम था। इसी दिशा में कदम उठाते हुए, यूनेस्को ने विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस की स्थापना की। लेकिन यूनेस्को के उद्देश्य से पूरा विश्व ही भटक गया था। लोग किताबों से दूरी बनाने लगे थे। लेकिन आॅनलाइन बुक्स (online books) स्टोर्स ने इस दूरी को कम करने में बहुत ही मदद की है। अब लोगों कि पहुंच किताबों तक आसानी से और लोग आनलाइन बुक्स स्टोर से किताबें खूब खरीद (buy books online) रहे हैं। वैसे इसके लिए कुछ अलग से करने की जरूरत है। वैसे किताबें बच्चों में अध्ययन की प्रवृत्ति, जिज्ञासु प्रवृत्ति, सहेजकर रखने की प्रवृत्ति और संस्कार रोपित करती हैं। पुस्तकें न सिर्फ ज्ञान देती हैं, बल्कि कला, संस्कृति, लोकजीवन, सभ्यता के बारे में भी बताती हैं। ऐसे में पुस्तकों के प्रति लोगों में आकर्षण पैदा करना जरूरी हो गया है। इसके अलावा तमाम बच्चे गरीबी के चलते भी पुस्तकें नहीं पढ़ पाते, इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों के लिए विभिन्न जानकारियों व मनोरंजन से भरपूर पुस्तकों की प्रदर्शनी जैसे अभियान से उनमें पढ़़ाई की संस्कृति विकसित की जा सकती है।
वैसे इंसान के स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है जब तक उसकी आंखे धुंधली नहीं हो जाती। लेकिन आज कम्प्यूटर और इंटरनेट के प्रति बढ़ती दिलचस्पी के कारण पुस्तकों से लोगों की दूरी घटती जा रही है। आज के युग में लोग इंटरनेट के माध्यम से किताबें खरीद रहे हैं। लेकिन दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इंटरनेट के कारण किताबों के प्रति लोगों का रुझान कम हुआ है और किताब और किताब प्रेमियों के बीच यह दूरी और बढ़ी है। यही कारण है कि लोगों और किताबों के बीच की दूरी को पाटने के लिए यूनेस्को ने ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाने का निर्णय लिया। पहली बार 23 अप्रैल, 1995 को ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाया गया था। बाद में यह हर देश में व्यापक होता गया। किताबों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इसके बारे में बताने के लिए ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर विभिन्न शहरों में कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
वैसे भारत में ‘सभी के लिए शिक्षा कानून’ को इसी दिशा में देखा जा रहा है। जागरुकता अभियान लोगों में पुस्तक प्रेम को जागृत करने के लिए मनाये जाने वाले ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर जहां स्कूलों में बच्चों को पढ़़ाई की आदत डालने के लिए सस्ते दामों पर पुस्तकें बांटने जैसे अभियान चलाये जा सकते हैं, वहीं स्कूलों या फिर सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनियां लगाकर पुस्तक पढ़ने के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। स्कूली बच्चों के अलावा उन लोगों को भी पढ़़ाई के लिए जागरूक किया जाना जरुरी है जो किसी कारणवश अपनी पढ़़ाई छोड़ चुके हैं। पुस्तकालय इस सम्बन्ध में अहम भूमिका निभा सकते हैं, बशर्ते उनका रख-रखाव सही ढंग से हो और स्तरीय पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएं वहां उपलब्ध कराई जाएं। इस ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर आप भी संकल्प करें की लोगों को किताबों की प्रति रुचि बढ़ाने के लिए कई प्रयास करेंगे।
Sunday, 17 April 2016
Yourbookstall.com I Buy Books Online, Publish Your Book, Sell Old Books: भारत में तेजी से फलता-फूलता ई-कमर्स
Yourbookstall.com I Buy Books Online, Publish Your Book, Sell Old Books: भारत में तेजी से फलता-फूलता ई-कमर्स: ब्रिटेन माइकल अलड्रीच ने 1979 में जब ई-कमर्स का कॉन्सेप्ट दिया होगा तो उसने भी नहीं सोचा होगा की पूरी दुनिया का कमर्स ई-कमर्स की ओर देखने ल...
Saturday, 16 April 2016
ई-बुक से होंगे बच्चों के कंधे हल्के

Tuesday, 5 April 2016
जेल में लिखी गर्इं किताबें...

दूसरी ओर कई अपराधियों ने भी किताबें लिखी हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक अपराधी ने जेल में ही 9 किताबें लिख डाली थी। इसके अलावा भी कई ऐसे लोगा हैं जिन्होंने जेल में रहते हुए किताबें लिखी हैं। फरवरी में ही पिछले दो सालों से जेल की छोटी सी सेल में बेहद मामूली चीजों के सहारे जीवन बीता रहे सहारा प्रमुख सुब्रत राय की किताब का विमोचन जेल में ही हुआ। किताब के विमोचन के लिए उन्होंने अपने कंपनी सहारा का 39वां स्थापना दिवस चुना। सहारा प्रमुख ने तिहार जेल में न्यायिक हिरासत में रहते हुए अपनी तीन किताबों की सीरीज ‘थॉट फ्रॉम तिहार’ के पहले पार्ट ‘लाइफ मंत्रास’ को लिखा है।यह किताबें आॅनलाइन बुक्स (online books) स्टोर पर खूब बिक रही हैं और लोग भी इसे बाई बुक्स आॅनलाइन (buy books online) खूब खरीद रहे हैं। दूसरी ओर जेल में किताब लिखने को लेकर संजय दत्त भी चर्चा में हैं। मार्च में रिहा होने के बाद उन्होंने यह बात बताई। जेल में संजय दत्त ने अपनी दिनचर्या के अलावा अपने जीवन के अनुभवों को लिखने में भी उन्होंने खुद को व्यस्त रखा। अब उनके इन अनुभवों ने एक किताब का रूप ले लिया है। मुंबई बम विस्फोट मामले में जेल की सजा काटने के बाद हाल में रिहा हुए 56 वर्षीय अभिनेता ने दो कैदियों के साथ मिलकर 500 से अधिक ‘शेर’ लिखे हैं और अब वह अपने इस काव्य संग्रह को ‘सलाखें’ नाम की एक किताब के रूप में प्रकाशित करवाना चाहते हैं। दत्त ने कहा, मैंने कुछ लिखा है और मैं इस किताब ‘सलाखें’ को जारी करूंगा। हम इसे कुछ लोगों (प्रकाशकों) को दिखाएंगे। जिशान कुरैशी, समीर हिंगल नाम के दो कैदियों के साथ मैंने 500 शेर लिखे हैं। वे दोनों रेडियो स्टेशन में मेरे साथ थे। ये सभी शेर हिंदी में लिखे गये हैं।
Saturday, 2 April 2016
सबसे विवादित किताबों पर एक नजर...
कलम की ताकत से दुनिया का हर पढ़ा लिखा व्यक्ति परचित है। चाहे वह नारा हो, लेख हो या कोई किताब। वह समाज को एक नई दिशा देती है, सच्चाई बताती है, विवाद, वैमन्स्य, खड़ा करती और समाज को भटकाती भी है। कागज पर उकेरे बहुत कम ही ऐसे शब्दों की पोटलियां रही जिससे नाकारात्मकता फैलाने की कोशिश की गई। यहां हम कुछ ऐसे ही किताबों की चर्चा करेंगे जिन्हें विवाद के कारण प्रतिबंध लगा दिया गया। भले ही उस समय उन किताबों पर प्रतिबंध लगा दिया गया हो लेकिन आज वह किताबें आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) पर उलब्ध हैं जहां से कोई भी बाई बुक्स आॅनलाइन (buy books online) खरीद सकता है। लेकिन विवाद किस कारण हुआ यह हम आपको बताते हैं।
पिक्टन: इन हिज ओन वड्स
लेखक :- रॉबर्ट पिक्टन

इस किताब पर विवाद के प्रतिबंध लगा दिया और बाजार में आने के कुछ घंटे के बाद ही उसे आॅनलाइन बुक्स स्टोरों से हटा दिया गया। सूअर फार्म चलाने वाले और किसी जमाने में करोड़पति रहे रॉबर्ट पिक्टन ने एक के बाद एक छह हत्याएं की थीं। उन्हें साल 2007 में सजा भी सुनाई गई थी।
इफ आई डिड इट: कनफेशन्स आॅफ द किलर
लेखक :- ओजे सिम्पसन (आनाम लेखक)

इसमें बताया गया था कि किस तरह ये हत्याएं की गई होंगी। सिम्पसन ने किसी और से यह किताब लिखवाई थी और इससे पैसे भी कमाए थे। किताब से दोनों पीड़ितों के रिश्तेदारों को ठेस पहुंची। इसके पहले उन्होंने सिम्पसन के खिलाफ एक मुकदमा जीत लिया था। उन्हें मुआवजे के तौर पर 3 करोड़ डॉलर की रकम दी गई थी। सिम्पसन फिलहाल जेल में हैं। वे अपहरण और डकैती के दोष में 33 साल की सजा काट रहे हैं।
लोलिता
लेखक :- व्लादीमीर नबोकोव

इसलिए कोई प्रकाशक इसे छापने को तैयार नहीं था। आखिरकार, पेरिस की एक ऐसी कंपनी ने इसे छापा, जो पोर्नोग्राफी छापा करती थी। किताब के आने के बाद उस पर ब्रिटेन और फ्रांस में प्रतिबंध लगा दिया गया। ब्रिटेन में यह रोक 1959 तक रही। इसकी अब तक पांच करोड़ प्रतियां छप चुकी हैं।
द सैटेनिक वर्सेज
लेखक :- सलमान रुश्दी

माइन काम्फ: माई स्ट्रगल
लेखक :- एडोल्फ हिटलर

सरकार नव विवाहितों को यह उपहार में देने लगी। बड़े अधिकारियों के घरों में इसकी सोने की पत्तियों से मढ़ी प्रतियां रखी जाने लगीं। उस दौरान इस किताब की 1 करोड़ 20 लाख प्रतियां छपी हैं। नाजिÞयों की हार के बाद 1945 में इस किताब की कॉपीराइट बैवेरिया राज्य को सौंप दी गई। इस पर किताब पर 70 साल तक प्रतिबंध लगा रहा। यह कॉपीराइट 1 जनवरी 2016 को खत्म हो गई। म्युनिख का इंस्टीच्यूट आॅफ कंटेपरेरी हिस्ट्री अब इसका नया संस्करण छापेगा।
आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंग्स
लेखक :- माया एंजेलो
साल 1970 में छपी माया एंजेलो की किताब ‘आई नो व्हाई द केज्ड बर्ड सिंग्स’ उनके अनुभवों पर आधारित है। इसमें अमरीका के गरीब इलाके डीप साउथ में एक बच्चे पर होने वाले अत्याचार और दुर्व्यवहार का वर्णन है। माया ने अपने बचपन के 10 साल वहां बिताए।
उन्होंने वहां नस्ल के आधार पर होने वाले भेदभाव और पूर्वग्रहों के बारे में बताया। इस किताब में वर्णन है कि किस तरह सात साल की उस बच्ची से उसकी मां का ब्वॉय फ्रेंड बलात्कार करता है।
Thursday, 31 March 2016
Is literature readership depleting in India?
Fast food, erratic life style, heavy competition, life has
become too fast nowadays, leaving us with little time for having a cup of
coffee in our balcony and reading a book.
But is it a fact that there is a decline in readership in
the country? If you believe me it is not. Yes, it may sound strange but on the
contrary I feel that readership is increasing day by day.
This I believe it due to the advent of online bookstores and
online books. The more easier it is to find, buy and read a book, the more will
be its readership and same is happening nowadays.
I remember my school days, hardly there were few students
who were interested in books and took literature books from the school library
but now I see lot more students talking about books.
There has been an increase in exposure, initially literature
was confined to a selected few, who used to visit libraries and participate in
discussions and were a part of that ‘covert’ literary circles, now I feel this
circle has become more democratic.
We have a fast life, so don’t have time to visit a library
or a bookstore and browse books, that too during official hours because
bookstores remain open during official hours. But with an online bookstore we
could browse it even at 2 am!
Moreover, it would take hours to find the books we are
looking for in a library or a bookstore, in an online bookstore it is available
at the click of a mouse. We can not only browse through millions of titles but
can also read and buy books online within minutes.
So despite the fact that there are so many critics of online
books, I still believe that they are beneficial for the book lover community.
Happy Reading!
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