Saturday 1 April 2017

कहां गया आज के बच्चों का साहित्य ?

आज विशेषज्ञों, पाठकों, लेखकों, विचारकों व प्रकाशकों का मानना है कि बच्चों में पढ़ने-पढ़ाने की प्रवृत्ति को बढ़ाने के लिए देश के सभी पुस्तक मेले में बच्चों के साथ बड़ों का भी प्रवेश निःशुल्क होना चाहिए। किताबें रोचक, सस्ती व सुलभ होनी चाहिए। अब बाल साहित्य में उस किरदार का वक्त है जो खुद परी बन कर नानी को कहानी सुनाती है। अगर हम दिल्ली पुस्तक मेले की बात करें तो  इस बार मेले में 14 नंबर हॉल बाल साहित्य मंडप के नाम पर आरक्षित था। बालमंडपम में एक काउंटर लगाने के एवज में 60 हजार रुपए लगते हैं। जबकि 12 नंबर या 11 नंबर जैसे हॉल अपेक्षाकृत सस्ते हैं जिसके एक स्टॉल का किराया 36 हजार रुपए है। बड़े प्रकाशक तो एक बार फिर भी बाल मंडप में जाने के लिए हिम्मत जुटा लेते हैं, लेकिन छोटे प्रकाशकों को इतनी बड़ी राशि देना आसान नहीं। लिहाजा या तो वे अन्य हॉल में ही शरण लेकर अपनी किताबें पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश में लगे हैं या पुस्तक मेले में भागीदारी के लिए एक साल का अंतर करने या इंतजार भी करने की सोच रहे हैं। इधर आॅनलाइन बुक्स स्टोर्स (online bookstore) के भी मार्केट धीरे-धीरे पकड़ रहा है ऐसे में बच्चों के साहित्य की उपलब्धता बढ़ने की संभावना देखी जा रही है। वैसे कई आॅनलाइन बुक्स स्टोर्स के मालिकों का मानना है कि बच्चों के साहित्या की कीमत कम रहती है ऐसे में किसी को बाय बुक्स आॅनलाइन (Buy books online) मंहगा पड़ जाता है। क्योंकि शिपिंग चार्ज इसपर ज्यादा वसूला जाता है। मेले में अपना स्पर्शमणि प्रकाशन व अपना बाल साहित्य लेकर्र आइं डॉक्टर मधु पंत बताती हैं कि बाल साहित्य में सरकारी संस्थान जैसे प्रकाशन विभाग और राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी) तो फिर भी काम कर रहे हैं। लेकिन निजी प्रकाशक इसके लिए तैयार नहीं हैं। जहां उनकी लिखी किताब की लोकप्रियता को देखते हुए प्रकाशन विभाग इसे 15 भाषाओं में छापने की तैयारी में है, वहीं निजी प्रकाशक उनकी किताब तक छापने को तैयार नहीं। वे मुनाफा चाहते हैं। इसलिए डॉक्टर पंत ने अपना प्रकाशन शुरू किया। राष्टकृीय बाल भवन की निदेशक रह चुकीं मधु पंत कहती हैं कि आज के समय में बच्चे ज्यादा जानकार, ज्यादा चिंतनशील, तार्किक व कुशाग्र हैं। लेकिन उस हिसाब से बाल साहित्य में अनोखापन, नयापन, नई संकल्पना व व्यक्तित्व विकास की बात करती किताबें नहीं आ रही हैं। कोई शोध भी नहीं हो रहा। हास परिहास को बढ़ाने वाली, खेल-मस्ती को उभारने वाली किताबें न के बरबार हैं। वे कहती हैं कि सरकार को चाहिए कि वह आर्थिक सहयोग देकर बाल साहित्य छापने को बढ़ावा दें। पुस्तक मेले में टिकट न हो। हॉल नंबर 12 में बाल साहित्य का काउंटर लगाए एक प्रकाशक ने बताया कि यहां अच्छी किताबें होकर भी बिक्री उतनी नहीं हो रही है क्योंकि इस हॉल में आम तौर से बच्चों की नहीं बड़ों की किताबों के पाठक आ रहे हैं। जबकि बच्चों के लिए किताब चाहने वाले 14 नंबर में जा रहे हैं। चंूकि 14 नंबर हॉल में किराया 60 हजार रुपए है, हमने छूट की मांग रखी थी लेकिन सुनवाई नहीं हुई। लिहाजा सस्ते हॉल में काउंटर खोलने का फैसला किया। मेला घूमने आए राष्ट्रीय बाल भवन के पूर्व अध्यक्ष जेएस राजपूत का कहना है कि ग्रंथ शिल्पी ने दुनिया भर के व देश के तमाम भाषाओं के बाल साहित्य की किताबों का अनुवाद कराने का बड़ा काम किया है। इनमें कई दुर्लभ भी हैं। लेकिन यहां मेले में शरीक होना इतना महंगा है कि उनकी हिम्मत जवाब दे जाती है। अब वे एक साल के अंतराल पर मेले में आना चाहते हैं। राजपूत ने यह भी कहा कि बाल साहित्य व अच्छे बाल साहित्य का चयन करने का एक ब्यूरो होना चाहिए जो चयन करे व सरकार इसे छूट देकर छपवाए, जिनकी किताबें लाइबे्ररी में नहीं खरीदी जातीं उन्हें छूट दी जाए। वे कहते हैं कि मौलिक लेखन की कमी है जो पहले से उपलब्ध साहित्य है वह भी आज के संदर्भ में जोड़ने वाले होने चाहिए। मेले से लौट रहे साहित्यकार व बाल साहित्य लेखक दिविक रमेश कहते हैं कि तमाम चुनौतियों के बावजूद आज अच्छा लेखन हो रहा है। वे नंदन के पूर्व संपादक जयप्रकाश भारती के कथन का जिक्र करते हुए कहते हैं कि यह बाल साहित्य का स्वर्ण युग है। जहां हितोपदेश, जातक कथाएं, पंचतंत्र का खजाना तो है ही आज के संदर्भ में तार्किकता व चिंतनशीलता को बढ़ाने वाली, खुला आसमान देती रचनाएं भी आ रही हैं। आज ज्ञान परी, संगीत परी की कहानियां हैं तो नानी को कहानी सुनाती बच्ची भी है जो खुद परी का किरदार है। आज के हिसाब से दोस्ताना रुख वाली रचनाएं हैं जो उपदेश नहीं देतीं। वहीं नाटक (बल्लूहाथी का बाघला) भी लिखे जा रहे हैं। आज खास कर कविताएं भी आ रही हैं। बलराम, रमेश तैलंग, अशोक के संपादन वाली उमंग है तो प्रकाश मनु की रचनाएं भी हैं। संस्मरण भी हैं। फूल भी और फल महादेवी वर्मा की ऐसी ही रचना है तो बाल वाटिका राजस्थान की बाल पत्रिका है। वहीं उत्तर प्रदेश में बाल साहित्य लेखन को बढ़ावा देने के लिए दो लाख रुपए का बाल भारती पुरस्कार भी है। जो खुद उन्हें भी मिल चुका है। वे बाल साहित्य में भी नोबेल पुरस्कार दिए जाने की वकालत करते हैं। वे कहते हैं कि अखबारों व टीवी पर नए बाल साहित्य पर चर्चा होनी चाहिए ताकि लोगंों को पता चले। तब किताबें बिकेंगी और पढ़ी जाएंगी।

Thursday 2 February 2017

Valentine's Day Gift Ideas

Valentine's day is a celebration of love, but every year it comes with a great confusion among, what to gift on valentines' day.
This time we have come up with an unique valentine's day idea and are listing five great, immortal love story books that you could gift to your beloved ones this Valentine Day. These books are available in almost all the online bookstores and one can easliy buy books online:-

1. “The only regret I will have in dying is if it is not for love.”― Gabriel García Márquez.

Love in the Time of Cholera, by Marquez is one of the best evergreen love story that one can read over and over again. Book and its lead character Florention is a living museum of love....
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2. “Love means never having to say you're sorry.”― Erich Segal.

Love Story by Erich Segal is very simple, touchy story and due to its simplicity anyone can relate the story to his/her own life. A must read for people who are in love.
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3. “I'd cut up my heart for you to wear if you wanted it.”― Margaret Mitchell.

 Gone with the Wind by Margaret Mitchell both the book and movie as well leaves us with an everlasting impression.
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4. “You are the answer to every prayer I've offered. You are a song, a dream, a whisper, and I don't know how I could have lived without you for as long as I have.”― Nicholas Sparks.

The Notebook By Nicholas Sparks is a great, light, emotional and an evergreen love story that will always remain a favorite read for the lovers.
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5. “Don't be afraid to fall in love again. Open your heart and follow where it leads you...and remember, shoot for the moon.”― Cecelia Ahern.

P.S. I Love You by Cecilia Ahern is an ulimate saga of romance teaching us how love is beyond life and death how can one love someone even after death...
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Sunday 22 January 2017

Online bookstore Yourbookstall.com announces FLAT 35% off on books, on this republic day



Bhopal: The largest online bookstore of India, Yourbookstall.com announced its ‘Great Republic Sale’ on January 26, 2017 and is offering a FLAT 35% discount on books.
The republic day offers are not only restricted to other ecommerce retailers, but almost all the online bookstores have also announced their big deals for the Republic Day, but the ‘Great Republic Sale’ at Yourbookstall.com is completely different and unique when compared all other retailers, said official sources.
“Firstly as the slogan for the Great Republic Sale says, ‘Its NOT UPTO but FLAT 35% OFF’ it is exactly the same, there are no such fake attractions of upto this much or that much discount, but it is clearly stated that its flat discount of 35% of any book of your choice. Secondly, and most importantly, though it is being said in the offer that it is only about 35% flat discount, but this coupon code, ‘REPUBLIC’ is also applicable over and above the discounts that are already offered on products, thus if a product is already having a 30% discount, then by using the code the customers can get upto 65% discounts, no hidden terms and conditions and no questions asked,” said the spokesperson.
As per the media release, under the ‘Great Republic Sale’ at Yourbookstall.com. The users can avail FLAT 35% on books of their choice by using the coupon code, ‘REPUBLIC’ on between 10 am and 6 pm on Republic Day, i.e., January 26, 2017.
Yourbookstall.com is the largest online bookstore of India, with the collection of millions of books across genres,  like literature, romance, hindi books, competition books, exam preparation books, comics, children books etc.

Wednesday 21 September 2016

आॅनलाइन बुक्स स्टोर के मुकाबले कहां हैं फुटपाथ की पुरानी किताबें

आज की बात हो या उस समय की जब हम लोगों के अनुसार किताबी कीड़ा हुआ करते थे। ऐसे में जब पुरानी किताबों (books)की बात हो तो वह दौर एक फिल्म की भांति मानस पटल पर गुजर जाता है। चाहे वह साहित्य की किताब हो या किसी सिलेबस की हम तो यहीं चाहते थे की कम से कम पैसा लगे और ज्यादा से ज्यादा उस किताब का उपयोग हो। इसके कई उदाहरण यादों के पन्नों में समेटा हुआ है। जैसे हम चौथी की परीक्षा देते तो परीक्षा से पूर्व हम किसी दोस्त या रिश्तेदार के बच्चों की पांचवी की किताब आधी कीमत पर ले लेते या तय कर लेते। वहीं दूसरी ओर अपनी चौथी की किताब तीसरी की परीक्षा दे रहे बच्चों को आधी कीमत पर बेंच देते। बस आज जमान बदल सा गया है। आज आॅनलाइन बुक्स स्टोर, (online bookstore) ई-बुक्स और रीडिंग डिवाइस के इस जमाने में ऐसे लोग और धंधे की अब थोड़ी बहुत जगह बच गई है। आज लोग घर बैठे आॅनलाइन बुक्स स्टोर से भारी यानी कभी-कभी तो 50 प्रतिशत तक डिस्काउंट पर बाई बुक्स आॅनलाइन (Buy books online) ले लेते हैं। बावजूद इसके मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु सहित ए और बी शहरों में फुटपाथ पर पुरानी किताबों का कारोबार अभी भी एक चोखा धंधा है। यहां किताबों के खुले बाजार में होमर और कालीदास जैसे दिग्गज लेखकों की किताबें बिकती हैं। कई पुस्तक विक्रेताओं का कहना है कि ईबुक्स, ई-रीडिंग डिवाइस और ऐप भी पुस्तक प्रेमियों के मन से छपी हुई किताबों का मोह तोड़ पाने में नाकाम रहे हैं और ऐसे किताब प्रेमी यहां से बहुत किफायती दामों में अपनी पसंदीदा किताब खरीदते हैं। हलांकि एक किताब विक्रेता ने बताया कि यह डिजिटल युग हमारे कारोबार के लिए एक चुनौती है, लेकिन अभी भी फुटपाथ पर बिकने वाली किताबों की पर्याप्त मांग है।                                            विशेषज्ञों का भी मानना है कि निश्चित तौर पर ई बुक्स, ई रीडिंग और कई ऐप जैसे डिजिटल उपकरण आने से पढ़ने वाले बहुत लोग किताबों से दूर जा रहे हैं। बावजूद इसके किताब विक्रेताओं ने भी उम्मीद नहीं छोड़ी है और किताब प्रेमियों को लुभाने के लिए नए-नए तरीके खोज निकाले हैं। विक्रेताओं के अनुसार शुरुआत में हम पुरानी किताबें बेचते हैं, जो 50 फीसद से भी ज्यादा सस्ती होती हैं। इसके अलावा भी वे अब अपने खरीदारों से पक्की दोस्ती बनाए रखने के लिए उन्हें किराए पर भी उनकी पसंदीदा किताबें देने लगे हैं। यह तरीका नए ग्राहक बनाने के लिए बहुत कारगर है। खास तौर पर छात्र इसके कारण बार बार हमारे पास ही आते हैं। उल्लेखनीय है कि महानगर में किताबों के इस सबसे बड़े खुले बाजार में गल्प, आत्मकथायें, फैशन, इतिहास, युद्ध और वन्यजीवन पर आधारित सभी प्रकार की किताबें 10 रुपए से 5,000 रुपए में मिल जाती हैं।

Monday 12 September 2016

हिन्दी की मशहूर कहानियां अब आॅडियो में भी

आज इंटरनेट की छोटी दुनिया में हिन्दी साहित्य के लिए अच्छी खबर है और फिर से हम अपनी संस्कृति की ओर लौटने लगे हैं। जब तक हमारे संस्कृति में लिखने की परंपरा नहीं थी तब तक हम कहानियां लोगों की जुबानी सुनते थे। आज फिर से वह दौर शुरू होने वाला है। क्योंकि जीवन की आपाधापी, सिकुड़ते वक्त और किताबों के अस्तित्व पर मंडराते खतरे की चर्चा के बीच इंटरनेट पर हिन्दी साहित्य की कालजयी और भूली बिसरी कृतियों को आडियो स्वरूप में डालकर प्रौद्योगिकी की मदद से किस्सागोई की नई पहल हो रही है। इनमें प्रेमचंद, चंद्रधरशर्मा गुलेरी, सुदर्शन से लेकर कमलेश्वर, स्वयं प्रकाश और आधुनिक कहानीकारों की रचनाएं शामिल हैं। इसे आॅडियों में पिरोने का काम भी एक साहित्यकार ने ही किया है। अमेरिका में रहने वाले अनुराग शर्मा स्वयं कहानीकार हैं और पिछले कुछ वर्षों से ऐसे ही प्रयासों में संलग्न हैं।

250 से भी अधिक कहानियों का आॅडियो

उन्होंने प्रेमचंद, भीष्म साहनी सहित विभिन्न हिन्दी रचनाकारों की 250 से अधिक कहानियों के आॅडियो स्वरूप को आर्काइव डाट काम तथा अन्य प्लेटफार्म पर डाला है। इन कहानियों को कोई भी व्यक्ति सुन सकता है और डाउनलोड भी कर सकता है। उन्होेंने बताया कि कहानियों के इन आडियो संस्करण पर अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।  अनुराग ने कहा कि वाचिक परम्परा बीच बीच में टूटती है। किन्तु यही परंपरा पुल भी बनाती है। मसलन, विदेश में पाकिस्तान के पाठक हिन्दी साहित्य और हिन्दी के पाठक उर्दू साहित्य को लिपि बाधा के कारण प्राय: पढ़ने में दिक्कत महसूस करते हैं। पर यदि इन भाषाओं के साहित्य को वे जब आडियो स्वरूप में सुनते हैं तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती। वैसे यह प्रयास कई प्रकाशकों ने शुरू किया और वह आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) से लोग उसे (Buy books online)खरीद भी रहे हैं, लेकिन इस प्रकार का प्रयोग और फ्री में उपलब्धता पहली बार हुई है। इसके लिए अनुराग शर्मा बधाई के पात्र हैं।

कब हुई शुरुआत और कहां-कहां मनाया जाता है

हमारे देश में किस्सागोई का प्रचलन सभ्यता की शुरुआत से ही है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक और कुछ क्षेत्रों में आज तक यह परंपरा जारी है। वैसे किस्सागोई को उत्सव के रूप में मनाने की शुरूआत स्वीडन में 1991-92 में हुई, जब वहां 20 मार्च को राष्ट्रीय किस्सागोई दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। धीरे-धीरे किस्सागोई दिवस मनाने का यह सिलसिला सरहदों की सीमाओं को पार कर गया। 1997 में तो पश्चिमी आॅस्ट्रेलिया के पर्थ में किस्सागोई का पांच दिवसीय उत्सव मनाया गया। मैक्सिको एवं अन्य दक्षिण अमेरिकी देशों में भी 20 मार्च को राष्ट्रीय किस्सागोई दिवस मनाया जाने लगा। 2005 में पांच महादेशों के 25 देशों में यह दिवस आयोजित किया गया। 2009 से यूरोप, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका,दक्षिणी अमेरिका एवं आॅस्ट्रेलिया, सभी महादेशों में यह दिवस मनाया जाने लगा। 

Monday 29 August 2016

हिन्दी की कुछ कालजयी कहानियां...

भारत में कोई भी भाषा इतनी विविधतापूर्ण और बड़ी है उनकी साहित्य और संस्कृति में कुछ चुनिंदा चीजों को निकालना अपने आप में चुनौतीपूर्ण होता है। खासकर ऐसी भाषा के साहित्य में चुनाव तो और असंभव हो जाता है जिसको बोलने और समझने वाले एक अरब से ज्यादा हो। हम बात कर रहे हैं हिन्दी की। आज हम हिन्दी के उन चुनिंदा कहानियों के बारे में बात करेंगे जो हमें तो बहुत पसंद है साथ ही समीक्षकों एवं विशेषज्ञों ने भी इसकी सराहना की है। क्योंकि यह कहानी आज साहित्य की धरोहर है। लोग आज भी 50-100 साल पुरानी प्लेटफार्म पर लिखी इस कहानी को पढ़ने से नहीं चुकते। यह सभी कहानियां आॅनलाइन (online books) फ्री उपलब्ध है, या किसी भी आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online books)से बेहद सस्ते में उपलब्ध है। 

कहानी : हार की जीत
लेखक : सुदर्शन

यह कहानी हमने पांचवी क्लास में पढ़ी थी कारण यह था कि यह हमारे सिलेबस में शामिल थी। इसमें एक डकैत और एक संत की कहानी है। इसे पढ़ते हुए आधुनिक-सभ्यता के पूर्व दार्शनिकों का कथन याद आता है ‘हर कोई दूसरे को छल रहा है और हर कोई दूसरे के द्वारा छला गया है।’ बाबा भारती और खड़ग सिंह की यह कहानी मनुष्य के भीतर छिपी अच्छाइयों के पुनरुद्धार और दूसरे मनुष्य पर विश्वास की अनश्वरता की अद्भुत लोकगाथात्मक कहानी है। यह इंसान के शरीर में दिल के धड़कने और उसके जीवित रहे आने की कहानी है।

कहानी का संवाद 
खड़गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूं। इसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।
‘बाबाजी, आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूं, केवल घोड़ा न दूंगा।’
‘अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूंगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।’
खड़ग सिंह ने पूछा, बाबाजी इसमें आपको क्या डर है?
‘सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे। यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान (घोड़ा) की ओर से इस तरह मुंह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही नहीं रहा हो।’


कहानी : कफन (Kafan)
लेखक : प्रेमचंद

कफन प्रेमचंद की कालजयी रचना है। यह कहानी आर्थिक विषमता को किसी अमानुषिक वास्तविकता की त्रासदी में बदलते देखना आज की वंचना और अमीरी की खाइयों में बांटने वाली राजनीति और समाज व्यवस्था पर यह कहानी एक कालजयी तमाचे की तरह है। जब तक समाज में अमीरी और गरीबी यानी वैभव और वंचना की खाई रहेगी, 'कफन' किसी क्लासिक की तरह कालजयी रहेगी।

कहानी का एक पैरा 
घीसू बोला-कफन लगाने से क्या मिलता? आखिर जल ही तो जाता। कुछ बहू के साथ तो न जाता। माधव आसमान की तरफ देखकर बोला, मानों देवताओं को अपनी निष्पापता का साक्षी बना रहा हो-दुनिया का दस्तूर है, नहीं लोग बांभनों को हजारों रुपए क्यों दे देते हैं? कौन देखता है, परलोक में मिलता है या नहीं! बड़े आदमियों के पास धन है, फूंके। हमारे पास फूंकने को क्या है? लेकिन लोगों को जवाब क्या दोगे? लोग पूछेंगे नहीं, कफन कहां है? घीसू हंसा-अबे, कह देंगे कि रुपये कमर से खिसक गए। बहुत ढूंढ़ा, मिले नहीं। लोगों को विश्वास न आएगा, लेकिन फिर वही रुपए देंगे। माधव भी हंसा-इस अनपेक्षित सौभाग्य पर। बोला-बड़ी अच्छी थी बेचारी! मरी तो खूब खिला-पिलाकर!

कहानी : टोबा टेक सिंह (Toba Tek Singh)
लेखक : सआदत हसन मंटो

भारत-पाकिस्तान के बंटवारे विभाजन पर अनेक कहानियां, उपन्यास, समाजशास्त्रीय-राजनीतिक विश्लेषण आदि लिखे गए, लेकिन सआदत हसन मंटो की कहानी ‘टोबा टेक सिंह’ इस विभाजन के पीछे सक्रिय राजनीति और सांप्रदायिकता के उन्माद की अविस्मरणीय, सार्वभौमिक, कालजयी क्लासिक बन गई। जब पाकिस्तान के पागल बिशन सिंह को उसके गांव टोबा टेक सिंह से निकाल कर हिंदुस्तान भेजा जाता है तब वह दोनों देशों की सरहद पर मर जाता है। उसके शरीर का आधा हिस्सा हिंदुस्तान और आधा पाकिस्तान की सीमा में आता है। मरने के पहले पागल बिशन सिंह की गाली, भारत और पाकिस्तान के लहूलुहान बंटवारे पर एक ऐसी टिप्पणी बन जाती है, जो अब विश्व कथा साहित्य में एक गहरी, मार्मिक, अविस्मरणीय मनुष्यता की चीख के रूप में हमेशा के लिए उपस्थित है।

कहानी से एक पैरा
हर वक्त खड़ा रहने से उसके पांव सूज गए थे। पिंडलियां भी फूल गई थीं। मगर इस जिस्मानी तकलीफ के बावजूद वह लेटकर आराम नहीं करता था। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान और पागलों के तबादले के मुतअिल्लक जब कभी पागलखाने में गुफ्तगू होती थी तो वह गौर से सुनता था। कोई उससे पूछता कि उसका क्या खयाल है तो बड़ी संजीदगी से जवाब देता, ‘गुड़-गुड़ दी एनेक्सी दी वेध्याना दी मूंग दी दाल आॅफ दी पाकिस्तान एंड हिंदुस्तान आॅफ दी दुर्र फिट्टे मुंह............’



कहानी : तीसरी कसम उर्फ  ‘मारे गए गुलफाम’
लेखक : फणीश्वर नाथ रेणु

तीसरी कसम उर्फ  ‘मारे गए गुलफाम’ फणीश्वर नाथ रेणु की अद्भूत कथा है। इस कथा में बातचीत, मनोभाव, मानवीय संबंधो के सहारे प्रवाह आया। समकालीन चलन की तुलना में पात्रों का चरित्र चित्रण सत्यता, सादगी, संवेदनशीलता से पूर्ण था। शहरी और देहाती भावनाओं और संवेदनाओं की विडंबनात्मक रोमैंटिक परिणति की यह कहानी अविस्मरणीय है। आंचलिक भाषा के आधुनिक कथा-स्थापत्य में संयोजन और प्रयोग ने इस कहानी को विरल होने का दर्जा दिया है।

कहानी का अंश 
हिरामन अपने लोटे में चाय भर कर ले आया। ...कंपनी की औरत जानता है वह, सारा दिन, घड़ी घड़ी भर में चाय पीती रहती है। चाय है या जान!
हीरा हंसते-हँसते लोट-पोट हो रही है - अरे, तुमसे किसने कह दिया कि क्वारे आदमी को चाय नहीं पीनी चाहिए?
हिरामन लजा गया। क्या बोले वह? ...लाज की बात। लेकिन वह भोग चुका है एक बार। सरकस कंपनी की मेम के हाथ की चाय पी कर उसने देख लिया है। बडी गर्म तासीर!
‘पीजिए गुरु जी!’ हीरा हंसी!
‘इस्स!’
नननपुर हाट पर ही दीया-बाती जल चुकी थी। हिरामन ने अपना सफरी लालटेन जला कर पिछवा में लटका दिया। आजकल शहर से पांच कोस दूर के गांववाले भी अपने को शहरू समझने लगे हैं। बिना रोशनी की गाड़ी को पकड़ कर चालान कर देते हैं। बारह बखेड़ा!
‘आप मुझे गुरु जी मत कहिए।’
‘तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शास्तर में लिखा हुआ है, एक अच्छर सिखानेवाला भी गुरु और एक राग सिखानेवाला भी उस्ताद!’

Friday 5 August 2016

‘ई-बुक्स’ की ओर खींचे जा रहे हैं किताब प्रेमी

भारत डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहा है और तकनीक हर क्षेत्र में बदलाव ला रही है। अब तो स्कूल से लेकर कॉलेज तक की किताबें इंटरनेट पर उपलब्ध हो रही हैं। यानी ‘ई-बुक’ किताबों (books) का नया संसार है। वैसे आप पढ़ाकु और किताबी कीड़े हैं तो आपके घर का एक कमरे में किताबों से भरा पड़ा होगा। तमाम वह किताबें आलमीरा में पड़ी होंगी जो आपकी फेवरेट किताब होगी और उसे आप पढ़कर रख दिए होंगे।  वैसे अगर आप पुराने पढ़ाकु हैं तो आपको ज्यादा स्मार्ट बनना पड़ेगा और आजकल के किताबी कीड़े हैं तो थोड़ा स्मार्ट तो बनना ही पड़ेगा। इससे न सिर्फ आपके पढ़ने का शौक पूरा होगा बल्कि पैसों की काफी बचत भी होगी। हम बात कर रहे हैं ई बुक्स की। ईबुक्स के लिए जरूरी नहीं आपके पास ई-बुक रीडर ही होना चाहिए। ईबुक्स को डाउनलोड करके आप अपने मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट और पीसी पर भी पढ़ सकते हैं। मगर सबसे बड़ा सवाल ये है कि ई-बुक्स मिलेंगी कहां से। इसका सरल जवाब है आॅनलाइन बुक्स स्टोर से। ये कई आॅनलाइन बुक्स स्टोर पर फ्री तो किसी आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) पर बेहद कम कीमत पर उपलब्ध है। यहां से आप ई-बुक्स (e-books) स्टोर से अपनी पसंद की ईबुक खरीदें और डाउनलोड कर सकते हैं।

सुदूर इलाके में सुगम पहुंच
कल तक बड़े शहरों से लेकर सुदूर इलाकों में रहने वाले स्टूडेंट्स के लिए साहित्य और अपने पाठ्यक्रम के मुताबिक मनचाही पुस्तक हासिल करना एक बड़ी दिक्कत रही है, लेकिन ईबुक्स ने इसे आसान कर दिया है।  पहले पाठ्यक्रम की पुस्तके उन्हें उसी लेखक की पुस्तक से करनी होती है, जो उनके नजदीक स्थित किताब विक्रेता के पास सुलभ हो। पढ़ाई के बदलते तरीके और महंगी होती किताबों के बीच देश में ‘ई-बुक्स’ का बाजार जोर पकड़ रहा है। इसकी वजह भी है, देश में लगभग 20 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल लैपटॉप, कंप्यूटर के जरिए करते हैं, तो 10 करोड़ सेलफोन से। एक तरफ जहां इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी ओर किताबों की अनुपलब्धता और कीमतों में इजाफा हो रहा है। इसी के चलते ‘ई-बुक्स’ के बाजार को संभावनाओं के पर लग गए हैं।

स्कूली बच्चों के लिए ज्यादा लाभदायक
कई प्रकाशकों एवं होलसेलरों का दावा है कि यह किताबें बाजार में मिलने वाली किताबों के मुकाबले दाम में आधी कीमत की होती हैं। वर्तमान में लगभग 60 प्रकाशक ‘ई-बुक्स’ उपलब्ध करा रहे हैं। ये ‘ई-बुक्स’ देश के लगभग हर हिस्से के पाठ्यक्रम से 50 से 70 फीसदी तक मेल खाती हैं। ‘ई-बुक्स’ जहां कंप्यूटर पर इंटरनेट की जरिए उपलब्ध है, उसके लिए डिवाइस बनाई है। वहीं टैबलेट और मोबाइल के लिए ऐप तैयार किया गया है। दौर बदल रहा है, भारत डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहा है और नई पीढ़ी का अंदाज नया है। इस बदलाव के बीच किताबें भी कागज की न होकर कंप्यूटर और मोबाइल पर आ रही हैं। किताबों के इस बदलाव का नई पीढ़ी को कितना लाभ होता है, यह कोई नहीं जानता।