साहित्य, संस्कृति और परंपरा के लिए भारत हमेशा से धनी देश रहा है। यहां की संस्कृति ऐसी है कि पूरा विश्व प्रशंसा करते नहीं थकता। यहां की परंपरा से जब कोई रूबरू होता है तो उससे बिना प्रभवित हुए नहीं रह सकता। अगर यहां कि साहित्य की बात की जाए तो साहित्य इतना धनी है कि जिसका वर्णन करना मुश्किल है। यहां के लेखकों को विदेशी अपना आदर्श मानते हैं। वैसे आलोचकों के पास एक सवाल हमेशा भारतीय साहित्य को लेकर रहता है कि अगर भारतीय साहित्य इतना धनी है तो एक रविन्द्रनाथ टैगोर को छोड़कर अन्य किसी को कोई नोबेल पुरस्कार क्यों नहीं मिला। कुछ एकाध लोगों को छोड़ दिया जाए तो बुकर सहित अन्य अतंरराष्ट्ीय पुरस्कार भारत की झोली में ना के बराबर है। एक तरह से देखा जाए तो यह तर्क और सवाल बिल्कुल ही जायज है और होना भी चाहिए। इसके बावजूद अगर आलोचक सही में इस तर्क का जवाब दे पाएंगे कि क्या प्रेमचंद की गोदान नोबेल लायक नहीं है। क्या धर्मवीर भारती की ‘गुनाहो का देवता’, फणीश्वरनाथ रेणु की ‘मैला आंचल’, भीष्म साहनी की ‘तमस’, शरत चंद्र चटर्जी की ‘देवदास‘, जयशंकर प्रसाद की ‘कमायनी’ जैसी किताबें नोबेल की मोहताज है। इसका सीधा जवाब है बिल्कुल नहीं। इसके अलावा भी इस विविधता वाले देश में कई क्षे़त्रीय जैसे मराठी, कन्नड़, मलयालम, तेलगू, तमिल, गुजराती, पंजाबी, बंगाली और असमिया सहित कई ऐसी भाषाएं है जिनके साहित्य इतना धनी है जिसकी कोई तुलना नहीं। इसके बावजूद भी आज के आधुनिक दौर के लेखक विश्व स्तरीय साहित्य का लेखन कर रहे हैं, जिसमें हिन्दी और अंग्रेजी दोनों के साहित्यकार शामिल हैं।
इसमें सबसे अच्छी बात है कि आज के दौर में साहित्यकारों के लिए लेखन, प्रकाशन और प्रचार करना और आसान हो गया है। उनके हाथ में सोशल मीडिया, टीवी, सामचार पत्र, बेबसाइट सहित अन्य कई उपयोगी चीजें है जिसका उपयोग कर वे अपनी किताबों का प्रचार प्रसार असानी से करते हैं। अगर पाठको तक किताब पहुंचाने की बात करें तो इसे ई-कमर्स कंपनियों ने और आसान बना दिया है। इंटरनेट पर किताबें खरीदना (buy books online) बहुत आसान हो गया है। यहां आॅनलाइन बुक्स (online books) के साथ-साथ आनलाइन बुक्सस्टोर (online bookstore) भी उपलब्ध हैं जो पाठकों तक न्यू रीलिज के साथ ही किताबें पहुंच जाती है। अतः अपने देशी साहित्यकार भी किसी अंतरराष्टृीय साहित्यकारों से कम नहीं है।
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