Thursday 2 June 2016

क्या ई-बुक का आना किताबों की दुनिया में क्रांति है.....

सूचना क्रांति के बाद हुए व्यापक बदलाव ने हमारी दुनिया को तो बदल ही दिया है। वहीं इस क्रांति ने सभी स्तर पर कई सवाल भी खड़े किए है जिसका जवाब देना मुश्किल होता है। इसके व्यापक रूप से गंभीर परिणाम हुए। गंभीर का आशय है कि अच्छे में भी बुरे में भी। समाजिक प्रभाव के साथ-साथ यह स्वास्थ्य, शिक्षा, बेरोजगारी, संचार सहित कई हिस्सों को प्रभावित किया है। इसमें एक हिस्सा किताबों का भी है। जिस तरह से किताबों के आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) खुल रहे हैं और किताबें बिक रही हैं उसने तो प्रकाशकों के लिए कई दरवाजे खोल दिए हैं, वह भी फिलहाल के लिए, क्योंकि इसके बाद वाले बदलाव के लिए कौन प्रकाशक तैयार यह देखना अभी बाकी है। वह दौर होगा ई-बुक का, जिसको लेकर यह सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि क्या ई-बुक (e book) का आना किताबों की दुनिया में क्रांति है? 

पाठक लेखक सभी के लिए सुविधा जनक

वैसे ई-बुक में साहित्य से लेकर पाठ्य-सामग्री की उपलब्धता ने लेखकों, प्रकाशकों और पाठकों के परंपरागत अनुभवों और संबंधों में आमूल-चूल बदलाव को अंजाम दिया है। इस रूप में अब कोई भी किताब प्रिंट फॉर्मेट के अलावा डिजिटल माध्यमों से भी पाठकों तक पहुंच रही हैं। आॅन लाइन बुक्स  स्टोर के आने से पहले छपी हुई किताबों की बिक्री और उन्हें पाठकों तक आसानी से पहुंचाना लेखकों और प्रकाशकों के लिए हमेशा से बड़ी चुनौती रही है। पाठक के हाथ में किताब के आने तक उसकी लागत भी बढ़ जाती है और मूल्य अधिक होने के बावजूद लेखक को मिलनेवाली रॉयल्टी भी पर्याप्त नहीं हो पाती। लेकिन ई-बुक ने बहुत हद तक इस समस्या का समाधान कर दिया है। डिजिटल फॉर्मेट में होने के कारण प्रिंट की तुलना में किताब की लागत बहुत कम हो जाती है। ई-बुक को आॅनलाइन बुक्स स्टोर पर बाई बुक्स आॅनलाइन (buy books online) अपलोड कर दिया जाता है, जहां से मामूली कीमत चुका कर कोई भी पाठक दुनिया के किसी भी हिस्से में उसे डाउनलोड कर सकता है। किताब की कीमत का बड़ा हिस्सा रॉयल्टी के रूप में सीधे लेखक के पास जाता है। 

प्रकाशन के समीकरणों में भी बदलाव

परंपरागत रूप में किसी लेखक को किताबें छपवाने के लिए स्थापित प्रकाशक के पास जाना पड़ता है। प्रकाशक लेखक की लोकप्रियता और बिक्री की संभावनाओं के आधार पर छापने या न छापने का फैसला करता है। यही कारक रॉयल्टी की रकम का निर्धारण भी करते हैं। अमूमन नए लेखकों के लिए छपना एक कठिन और लंबी प्रक्रिया होती है। लेकिन, डिजिटल तकनीक ने लेखक को छपने, कीमत और रॉयल्टी तय करने, पाठक से सीधे जुड़ने का प्लेटफॉर्म मुहैया कराया है। ई-बुक के फॉर्मेट ने नवोदित लेखकों को प्रकाशन-जगत में अपनी दखल देने का एक अवसर भी उपलब्ध कराया है। अब उन्हें प्रकाशकों की चिरौरी करने और अपने हिस्से की रॉयल्टी के लिए हाथ पसारने की जरूरत नहीं है।
 

हिंदी ई-बुक्स की आमद

तीन साल पहले तक इंटरनेट पर हिंदी ई-बुक्स (hindi books online) की स्तरीय साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रिकाएं उपलब्ध नहीं थीं। लेकिन अब वह हर आॅनलाइन बुक्स स्टोर पर असानी से उपलबध हैं। आजकल तो नए छपने वाले हिन्दी या इंग्लिश साहित्य के अब तीन फॉर्मेट हो गए हैं, हार्डबाउंड, पेपर बैक और ई-बुक। क्योंकि प्रकाशक भी जमाने की मिजाज को समझते हुए यह फैसला ले रहे हैं। अब तो हिंदी के अलावा कन्नड़, पंजाबी और तेलुगु साहित्य के लिए भी इस सुविधा का विस्तार किया जा रहा है। 

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