आज की बात हो या उस समय की जब हम लोगों के अनुसार किताबी कीड़ा हुआ करते थे। ऐसे में जब पुरानी किताबों (books)की बात हो तो वह दौर एक फिल्म की भांति मानस पटल पर गुजर जाता है। चाहे वह साहित्य की किताब हो या किसी सिलेबस की हम तो यहीं चाहते थे की कम से कम पैसा लगे और ज्यादा से ज्यादा उस किताब का उपयोग हो। इसके कई उदाहरण यादों के पन्नों में समेटा हुआ है। जैसे हम चौथी की परीक्षा देते तो परीक्षा से पूर्व हम किसी दोस्त या रिश्तेदार के बच्चों की पांचवी की किताब आधी कीमत पर ले लेते या तय कर लेते। वहीं दूसरी ओर अपनी चौथी की किताब तीसरी की परीक्षा दे रहे बच्चों को आधी कीमत पर बेंच देते। बस आज जमान बदल सा गया है। आज आॅनलाइन बुक्स स्टोर, (online bookstore) ई-बुक्स और रीडिंग डिवाइस के इस जमाने में ऐसे लोग और धंधे की अब थोड़ी बहुत जगह बच गई है। आज लोग घर बैठे आॅनलाइन बुक्स स्टोर से भारी यानी कभी-कभी तो 50 प्रतिशत तक डिस्काउंट पर बाई बुक्स आॅनलाइन (Buy books online) ले लेते हैं। बावजूद इसके मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बेंगलुरु सहित ए और बी शहरों में फुटपाथ पर पुरानी किताबों का कारोबार अभी भी एक चोखा धंधा है। यहां किताबों के खुले बाजार में होमर और कालीदास जैसे दिग्गज लेखकों की किताबें बिकती हैं। कई पुस्तक विक्रेताओं का कहना है कि ईबुक्स, ई-रीडिंग डिवाइस और ऐप भी पुस्तक प्रेमियों के मन से छपी हुई किताबों का मोह तोड़ पाने में नाकाम रहे हैं और ऐसे किताब प्रेमी यहां से बहुत किफायती दामों में अपनी पसंदीदा किताब खरीदते हैं। हलांकि एक किताब विक्रेता ने बताया कि यह डिजिटल युग हमारे कारोबार के लिए एक चुनौती है, लेकिन अभी भी फुटपाथ पर बिकने वाली किताबों की पर्याप्त मांग है। विशेषज्ञों का भी मानना है कि निश्चित तौर पर ई बुक्स, ई रीडिंग और कई ऐप जैसे डिजिटल उपकरण आने से पढ़ने वाले बहुत लोग किताबों से दूर जा रहे हैं। बावजूद इसके किताब विक्रेताओं ने भी उम्मीद नहीं छोड़ी है और किताब प्रेमियों को लुभाने के लिए नए-नए तरीके खोज निकाले हैं। विक्रेताओं के अनुसार शुरुआत में हम पुरानी किताबें बेचते हैं, जो 50 फीसद से भी ज्यादा सस्ती होती हैं। इसके अलावा भी वे अब अपने खरीदारों से पक्की दोस्ती बनाए रखने के लिए उन्हें किराए पर भी उनकी पसंदीदा किताबें देने लगे हैं। यह तरीका नए ग्राहक बनाने के लिए बहुत कारगर है। खास तौर पर छात्र इसके कारण बार बार हमारे पास ही आते हैं। उल्लेखनीय है कि महानगर में किताबों के इस सबसे बड़े खुले बाजार में गल्प, आत्मकथायें, फैशन, इतिहास, युद्ध और वन्यजीवन पर आधारित सभी प्रकार की किताबें 10 रुपए से 5,000 रुपए में मिल जाती हैं।
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Wednesday, 21 September 2016
Monday, 12 September 2016
हिन्दी की मशहूर कहानियां अब आॅडियो में भी
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiHI5JB-vqAhMbNeYcvNpgQxY8Fke2yXDtCGCK_emu3CyloQHSQ-g52T72MEsV9QiyrXZ5Tz70UKWLseLxg4IvndFnSonBo4TaDpF_iQXWz-RNdHAYjES1Xg6FhUMV1t_8mKjPlQdRC-WA/s320/prem-chand-ki-chuninda-kahaniyan.jpg)
250 से भी अधिक कहानियों का आॅडियो
उन्होंने प्रेमचंद, भीष्म साहनी सहित विभिन्न हिन्दी रचनाकारों की 250 से अधिक कहानियों के आॅडियो स्वरूप को आर्काइव डाट काम तथा अन्य प्लेटफार्म पर डाला है। इन कहानियों को कोई भी व्यक्ति सुन सकता है और डाउनलोड भी कर सकता है। उन्होेंने बताया कि कहानियों के इन आडियो संस्करण पर अच्छी प्रतिक्रिया मिली है। अनुराग ने कहा कि वाचिक परम्परा बीच बीच में टूटती है। किन्तु यही परंपरा पुल भी बनाती है। मसलन, विदेश में पाकिस्तान के पाठक हिन्दी साहित्य और हिन्दी के पाठक उर्दू साहित्य को लिपि बाधा के कारण प्राय: पढ़ने में दिक्कत महसूस करते हैं। पर यदि इन भाषाओं के साहित्य को वे जब आडियो स्वरूप में सुनते हैं तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं होती। वैसे यह प्रयास कई प्रकाशकों ने शुरू किया और वह आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) से लोग उसे (Buy books online)खरीद भी रहे हैं, लेकिन इस प्रकार का प्रयोग और फ्री में उपलब्धता पहली बार हुई है। इसके लिए अनुराग शर्मा बधाई के पात्र हैं।कब हुई शुरुआत और कहां-कहां मनाया जाता है
हमारे देश में किस्सागोई का प्रचलन सभ्यता की शुरुआत से ही है। वैदिक काल से लेकर आधुनिक काल तक और कुछ क्षेत्रों में आज तक यह परंपरा जारी है। वैसे किस्सागोई को उत्सव के रूप में मनाने की शुरूआत स्वीडन में 1991-92 में हुई, जब वहां 20 मार्च को राष्ट्रीय किस्सागोई दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया। धीरे-धीरे किस्सागोई दिवस मनाने का यह सिलसिला सरहदों की सीमाओं को पार कर गया। 1997 में तो पश्चिमी आॅस्ट्रेलिया के पर्थ में किस्सागोई का पांच दिवसीय उत्सव मनाया गया। मैक्सिको एवं अन्य दक्षिण अमेरिकी देशों में भी 20 मार्च को राष्ट्रीय किस्सागोई दिवस मनाया जाने लगा। 2005 में पांच महादेशों के 25 देशों में यह दिवस आयोजित किया गया। 2009 से यूरोप, एशिया, अफ्रीका, उत्तरी अमेरिका,दक्षिणी अमेरिका एवं आॅस्ट्रेलिया, सभी महादेशों में यह दिवस मनाया जाने लगा।Monday, 29 August 2016
हिन्दी की कुछ कालजयी कहानियां...
भारत में कोई भी भाषा इतनी विविधतापूर्ण और बड़ी है उनकी साहित्य और संस्कृति में कुछ चुनिंदा चीजों को निकालना अपने आप में चुनौतीपूर्ण होता है। खासकर ऐसी भाषा के साहित्य में चुनाव तो और असंभव हो जाता है जिसको बोलने और समझने वाले एक अरब से ज्यादा हो। हम बात कर रहे हैं हिन्दी की। आज हम हिन्दी के उन चुनिंदा कहानियों के बारे में बात करेंगे जो हमें तो बहुत पसंद है साथ ही समीक्षकों एवं विशेषज्ञों ने भी इसकी सराहना की है। क्योंकि यह कहानी आज साहित्य की धरोहर है। लोग आज भी 50-100 साल पुरानी प्लेटफार्म पर लिखी इस कहानी को पढ़ने से नहीं चुकते। यह सभी कहानियां आॅनलाइन (online books) फ्री उपलब्ध है, या किसी भी आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online books)से बेहद सस्ते में उपलब्ध है।
कहानी : हार की जीत
लेखक : सुदर्शन
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfDEEQxZiCcMiSfGcuQ_TRzHQcGrHmT71owAWZhfN1_872XpqDv_k7ZHmaOgndFA3OB8sRtBak7ZvBBpwlaL0RuN16YA0MfbgJoYRyneuS11Vwd1lwxgaDlKM2hAjHG3euWviXw-ej8fk/s1600/download.jpg)
कहानी का संवाद
खड़गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूं। इसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।
‘बाबाजी, आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूं, केवल घोड़ा न दूंगा।’
‘अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूंगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।’
खड़ग सिंह ने पूछा, बाबाजी इसमें आपको क्या डर है?
‘सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे। यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान (घोड़ा) की ओर से इस तरह मुंह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही नहीं रहा हो।’
कहानी : कफन (Kafan)
लेखक : प्रेमचंद
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कहानी का एक पैरा
घीसू बोला-कफन लगाने से क्या मिलता? आखिर जल ही तो जाता। कुछ बहू के साथ तो न जाता। माधव आसमान की तरफ देखकर बोला, मानों देवताओं को अपनी निष्पापता का साक्षी बना रहा हो-दुनिया का दस्तूर है, नहीं लोग बांभनों को हजारों रुपए क्यों दे देते हैं? कौन देखता है, परलोक में मिलता है या नहीं! बड़े आदमियों के पास धन है, फूंके। हमारे पास फूंकने को क्या है? लेकिन लोगों को जवाब क्या दोगे? लोग पूछेंगे नहीं, कफन कहां है? घीसू हंसा-अबे, कह देंगे कि रुपये कमर से खिसक गए। बहुत ढूंढ़ा, मिले नहीं। लोगों को विश्वास न आएगा, लेकिन फिर वही रुपए देंगे। माधव भी हंसा-इस अनपेक्षित सौभाग्य पर। बोला-बड़ी अच्छी थी बेचारी! मरी तो खूब खिला-पिलाकर!
कहानी : टोबा टेक सिंह (Toba Tek Singh)
लेखक : सआदत हसन मंटो
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कहानी से एक पैरा
हर वक्त खड़ा रहने से उसके पांव सूज गए थे। पिंडलियां भी फूल गई थीं। मगर इस जिस्मानी तकलीफ के बावजूद वह लेटकर आराम नहीं करता था। हिन्दुस्तान-पाकिस्तान और पागलों के तबादले के मुतअिल्लक जब कभी पागलखाने में गुफ्तगू होती थी तो वह गौर से सुनता था। कोई उससे पूछता कि उसका क्या खयाल है तो बड़ी संजीदगी से जवाब देता, ‘गुड़-गुड़ दी एनेक्सी दी वेध्याना दी मूंग दी दाल आॅफ दी पाकिस्तान एंड हिंदुस्तान आॅफ दी दुर्र फिट्टे मुंह............’
कहानी : तीसरी कसम उर्फ ‘मारे गए गुलफाम’
लेखक : फणीश्वर नाथ रेणु
तीसरी कसम उर्फ ‘मारे गए गुलफाम’ फणीश्वर नाथ रेणु की अद्भूत कथा है। इस कथा में बातचीत, मनोभाव, मानवीय संबंधो के सहारे प्रवाह आया। समकालीन चलन की तुलना में पात्रों का चरित्र चित्रण सत्यता, सादगी, संवेदनशीलता से पूर्ण था। शहरी और देहाती भावनाओं और संवेदनाओं की विडंबनात्मक रोमैंटिक परिणति की यह कहानी अविस्मरणीय है। आंचलिक भाषा के आधुनिक कथा-स्थापत्य में संयोजन और प्रयोग ने इस कहानी को विरल होने का दर्जा दिया है।
कहानी का अंश
हिरामन अपने लोटे में चाय भर कर ले आया। ...कंपनी की औरत जानता है वह, सारा दिन, घड़ी घड़ी भर में चाय पीती रहती है। चाय है या जान!
हीरा हंसते-हँसते लोट-पोट हो रही है - अरे, तुमसे किसने कह दिया कि क्वारे आदमी को चाय नहीं पीनी चाहिए?
हिरामन लजा गया। क्या बोले वह? ...लाज की बात। लेकिन वह भोग चुका है एक बार। सरकस कंपनी की मेम के हाथ की चाय पी कर उसने देख लिया है। बडी गर्म तासीर!
‘पीजिए गुरु जी!’ हीरा हंसी!
‘इस्स!’
नननपुर हाट पर ही दीया-बाती जल चुकी थी। हिरामन ने अपना सफरी लालटेन जला कर पिछवा में लटका दिया। आजकल शहर से पांच कोस दूर के गांववाले भी अपने को शहरू समझने लगे हैं। बिना रोशनी की गाड़ी को पकड़ कर चालान कर देते हैं। बारह बखेड़ा!
‘आप मुझे गुरु जी मत कहिए।’
‘तुम मेरे उस्ताद हो। हमारे शास्तर में लिखा हुआ है, एक अच्छर सिखानेवाला भी गुरु और एक राग सिखानेवाला भी उस्ताद!’
Friday, 5 August 2016
‘ई-बुक्स’ की ओर खींचे जा रहे हैं किताब प्रेमी
भारत डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहा है और तकनीक हर क्षेत्र में बदलाव ला रही है। अब तो स्कूल से लेकर कॉलेज तक की किताबें इंटरनेट पर उपलब्ध हो रही हैं। यानी ‘ई-बुक’ किताबों (books) का नया संसार है। वैसे आप पढ़ाकु और किताबी कीड़े हैं तो आपके घर का एक कमरे में किताबों से भरा पड़ा होगा। तमाम वह किताबें आलमीरा में पड़ी होंगी जो आपकी फेवरेट किताब होगी और उसे आप पढ़कर रख दिए होंगे। वैसे अगर आप पुराने पढ़ाकु हैं तो आपको ज्यादा स्मार्ट बनना पड़ेगा और आजकल के किताबी कीड़े हैं तो थोड़ा स्मार्ट तो बनना ही पड़ेगा। इससे न सिर्फ आपके पढ़ने का शौक पूरा होगा बल्कि पैसों की काफी बचत भी होगी। हम बात कर रहे हैं ई बुक्स की। ईबुक्स के लिए जरूरी नहीं आपके पास ई-बुक रीडर ही होना चाहिए। ईबुक्स को डाउनलोड करके आप अपने मोबाइल, लैपटॉप, टैबलेट और पीसी पर भी पढ़ सकते हैं। मगर सबसे बड़ा सवाल ये है कि ई-बुक्स मिलेंगी कहां से। इसका सरल जवाब है आॅनलाइन बुक्स स्टोर से। ये कई आॅनलाइन बुक्स स्टोर पर फ्री तो किसी आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) पर बेहद कम कीमत पर उपलब्ध है। यहां से आप ई-बुक्स (e-books) स्टोर से अपनी पसंद की ईबुक खरीदें और डाउनलोड कर सकते हैं।
सुदूर इलाके में सुगम पहुंच
कल तक बड़े शहरों से लेकर सुदूर इलाकों में रहने वाले स्टूडेंट्स के लिए साहित्य और अपने पाठ्यक्रम के मुताबिक मनचाही पुस्तक हासिल करना एक बड़ी दिक्कत रही है, लेकिन ईबुक्स ने इसे आसान कर दिया है। पहले पाठ्यक्रम की पुस्तके उन्हें उसी लेखक की पुस्तक से करनी होती है, जो उनके नजदीक स्थित किताब विक्रेता के पास सुलभ हो। पढ़ाई के बदलते तरीके और महंगी होती किताबों के बीच देश में ‘ई-बुक्स’ का बाजार जोर पकड़ रहा है। इसकी वजह भी है, देश में लगभग 20 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल लैपटॉप, कंप्यूटर के जरिए करते हैं, तो 10 करोड़ सेलफोन से। एक तरफ जहां इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी ओर किताबों की अनुपलब्धता और कीमतों में इजाफा हो रहा है। इसी के चलते ‘ई-बुक्स’ के बाजार को संभावनाओं के पर लग गए हैं।
स्कूली बच्चों के लिए ज्यादा लाभदायक
कई प्रकाशकों एवं होलसेलरों का दावा है कि यह किताबें बाजार में मिलने वाली किताबों के मुकाबले दाम में आधी कीमत की होती हैं। वर्तमान में लगभग 60 प्रकाशक ‘ई-बुक्स’ उपलब्ध करा रहे हैं। ये ‘ई-बुक्स’ देश के लगभग हर हिस्से के पाठ्यक्रम से 50 से 70 फीसदी तक मेल खाती हैं। ‘ई-बुक्स’ जहां कंप्यूटर पर इंटरनेट की जरिए उपलब्ध है, उसके लिए डिवाइस बनाई है। वहीं टैबलेट और मोबाइल के लिए ऐप तैयार किया गया है। दौर बदल रहा है, भारत डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहा है और नई पीढ़ी का अंदाज नया है। इस बदलाव के बीच किताबें भी कागज की न होकर कंप्यूटर और मोबाइल पर आ रही हैं। किताबों के इस बदलाव का नई पीढ़ी को कितना लाभ होता है, यह कोई नहीं जानता।
सुदूर इलाके में सुगम पहुंच
कल तक बड़े शहरों से लेकर सुदूर इलाकों में रहने वाले स्टूडेंट्स के लिए साहित्य और अपने पाठ्यक्रम के मुताबिक मनचाही पुस्तक हासिल करना एक बड़ी दिक्कत रही है, लेकिन ईबुक्स ने इसे आसान कर दिया है। पहले पाठ्यक्रम की पुस्तके उन्हें उसी लेखक की पुस्तक से करनी होती है, जो उनके नजदीक स्थित किताब विक्रेता के पास सुलभ हो। पढ़ाई के बदलते तरीके और महंगी होती किताबों के बीच देश में ‘ई-बुक्स’ का बाजार जोर पकड़ रहा है। इसकी वजह भी है, देश में लगभग 20 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल लैपटॉप, कंप्यूटर के जरिए करते हैं, तो 10 करोड़ सेलफोन से। एक तरफ जहां इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या बढ़ रही है तो दूसरी ओर किताबों की अनुपलब्धता और कीमतों में इजाफा हो रहा है। इसी के चलते ‘ई-बुक्स’ के बाजार को संभावनाओं के पर लग गए हैं।
स्कूली बच्चों के लिए ज्यादा लाभदायक
कई प्रकाशकों एवं होलसेलरों का दावा है कि यह किताबें बाजार में मिलने वाली किताबों के मुकाबले दाम में आधी कीमत की होती हैं। वर्तमान में लगभग 60 प्रकाशक ‘ई-बुक्स’ उपलब्ध करा रहे हैं। ये ‘ई-बुक्स’ देश के लगभग हर हिस्से के पाठ्यक्रम से 50 से 70 फीसदी तक मेल खाती हैं। ‘ई-बुक्स’ जहां कंप्यूटर पर इंटरनेट की जरिए उपलब्ध है, उसके लिए डिवाइस बनाई है। वहीं टैबलेट और मोबाइल के लिए ऐप तैयार किया गया है। दौर बदल रहा है, भारत डिजिटल इंडिया की तरफ बढ़ रहा है और नई पीढ़ी का अंदाज नया है। इस बदलाव के बीच किताबें भी कागज की न होकर कंप्यूटर और मोबाइल पर आ रही हैं। किताबों के इस बदलाव का नई पीढ़ी को कितना लाभ होता है, यह कोई नहीं जानता।
Saturday, 30 July 2016
स्वस्थ्य भी रखती है किताबें पढ़ने की आदत...
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjet1Zwmi3n05CAXjMTmA6UCbDy_un-hIFDT6cijyyIuB94LNdHnePU849jqlNDCXFPNY3L5yqMbLiHatUezhtaEMp42p8tkpHmPzUzXQKzREwxFaRAi1Eef55rgcEkIVJscygj8QIEfyA/s280/3.-Reading-books.jpg)
याददाश्त रहती है टनाटन
आज-कल हमारी दिनचर्या ऐसी हो गई है सारी निर्भरता मोबाइल पर हो गई है। पहले जुबानी कई लोगों के नंबर याद रखते थे लेकिन आज अपने घर का नंबर भी याद नहीं रहता। यह केवल उदाहरण भर है। लेकिन अगर आप पढ़ाई करते हैं तो आपकी याददाश्त बढ़ती है। टीवी देखने और कंप्यूटर पर काम करने की तुलना में पढ़ाई करने वालों का दिमाग ज्यादा तेज होता है। इसके अलावा किताब पढ़ने की आदत व्यक्ति के सोचने और समझने की क्षमता को बढ़ाती है।
तरोताजा रहता है दिमाग
किताब ने पढ़ने वाले व्यक्ति की तुलना में किताबें पढ़ने वाले आदमी का दिमाग हमेशा जवां रहता है। जो लोग रचनात्मक कार्यों जैसे पढ़ाई में अधिक वक्त बिताते हैं उनका दिमाग ऐसा न करने वालों की तुलना में 32 प्रतिशत अधिक जवां रहता है। उनके व्यक्तित्व से लेकर हर काम में ही किताब पढ़ने के लाभ दिखते हैं। इसको लेकर भी शोध हुए किताब को पढ़कर व्यक्ति कई अच्छी चीजों को अपने चरित्र में भी उतारता है।
आईक्यू लेवल में होती हैं बढ़ोतरी
शोध में यह भी निष्कर्ष निकला है कि जो लोग किताबें अधिक पढ़ते हैं उनका आई-क्यू लेवेल भी अधिक होता है। किताबें व्यक्ति को रचनाशील बनाती है जिसके कारण उनकी सोचने और समझने की क्षमता बढ़ जाती है। समाज से लेकर किसी भी प्रतियोगिता में वे हमेशा आगे रहते हैं। ऐसे व्यक्ति शायद ही निराशावादी होते हैं। उनकी सोच हमेशा साकारात्मक होती है।
अल्जाइमर से बचाव
किताब पढ़ने वाले व्यक्ति को कभी अल्जाइमर नहीं होती। अल्जाइमर एक प्रकार की दिमागी बीमारी है। इसके कारण व्यक्ति की याददाश्त कमजोर हो जाती है। जो लोग दिमागी गतिविधियों जैसे - पढ़ाई, चेस खेलना, पजल खेलने में व्यस्त रहते हैं उनमें अल्जाइमर के विकसित होने की संभावना कम होती है। इस निष्कर्ष से यह कहा जा सकता है कि पढ़ाकु लोग दिमाग से स्वास्थ्य और शरीर से भी स्वस्थ्य रहते हैं।
तनाव दूर करती है किताब
भले आप बात माने या न माने लेकिन तनाव के समय आप अपने सबसे प्रिय किताब को पढ़िए, शोध का दावा है कि आपके तनाव कम हो जाएंगे। क्योंकि किताबें व्यक्ति के तनाव के हार्मोन यानी कार्टिसोल के स्तर को कम करती हैं, जिससे तनाव दूर रहता है। दुनिया में आजकल तनाव दूर करने के लिए अब ज्यादा खर्च करने की जरूरत नहीं है। किसी भी आनलाइन बुक्स स्टोर पर जाइए और वहां से अपना सबसे फेवरेट आॅनलाइन खरीदकर घर बैठे मंगाए और घर बैठे तनाव दूर करें।
दिन और रात दोनों अच्छे
फायदों की सूची में नींद भी शामिल हैं जो लगभग दुनिया भर में लोगों की परेशानी है। रात में देर तक टीवी देखने और कंप्यूटर पर काम करने से आपकी नींद उड़ सकती है, लेकिन रात में सोने से पहले किताब पढ़ने से आपको अच्छी नींद का आ सकती है। इसलिए रात को सोने से पहले किताब पढ़ना न भूलें। अगर आप अपने दिन को खुशनुमा बनाना चाहते हैं तो पढ़ने की आदत इसमें आपकी मदद कर सकती है। यदि आपके पास आज कोई काम नहीं है तो दिन को बेहतर बनाने के लिए एक अच्छी किताब पढ़िए।
Friday, 1 July 2016
बच्चों की वह कहानियां जो बड़े भी पढ़तें हैं चाव से....
आज हम बाल साहित्य पर कुछ लिखने के लिए हम भी चाह रहे हैं बच्चा बन जाएं। जब हम बच्चे थे (10-13) हमारे आसपास तो टीवी श्वेत-श्याम था और उस समय भी इसकी खुमारी थी, लेकिन सीमित। क्योंकि उस समय महाभारत (बीआर चोपड़ा), चंद्रकांता (नीरजा गुलेरी), अलिफलैला और श्रीकृष्ण (रामानंद सागर) का दौर था। रामायण का दौर जा चुका था। यह एक विशेष दिन और विशेष समय पर आते थे। बाकी दिन हमारी दुनिया में रंग भरते थे कॉमिक्सों से। रंगीन पन्नों पर छपी कमांडो ध्रुव, नागराज, परमाणु, डोगा, राम-रहीम, भोकाल, नंदन, चंपक, बालहंस और चाचा चौधरी की कहानियों के नए अंक पढ़ने के लिए गली-गली साइकिल की पैडल मारते हुए बाजार से घर और घर से दूसरे या तीसरे दोस्त के यहां। कारण था सभी किताबें किराए से मिला करती थी तो अदला-बदली करके उसको पढ़ लिया करते थे। अगर जो मित्र कोई अंक खरीद लेता वह बॉस होता और खुद पढ़ने के बाद अपने चहेते मित्र फिर उससे कम चहेते मित्र, ऐसे करके हममें बंटा करती थी। परीक्षा के टाइम में भी स्कूल की किताबों के अंदर कॉमिक्स या बाल पत्रिकाएं छुपाकर पढ़ते हुए हम, शायद आजकल के बच्चों से अलग बचपन जी रहे थे। लेकिन आज के दौर में टीवी पर डोरेमन, मोटू-पतलू, वीडियो गेम, कंप्यूटर गेम और इंटरनेट के बीच बाल साहित्य खो सा गया है। वैसे समय-समय पर बहुत से प्रसिद्ध और महान लोगों ने बच्चों के लिए किताबें लिखी हैं, जो कि न सिर्फ बहुत ही ज्यादा चर्चित हुईं, बल्कि लोकप्रिय भी रहीं। आज हम कुछ ऐसी ही किताबों का जिक्र करेंगे जो हमेशा से लोकप्रिय और प्रसिद्ध रही।
पंचतंत्र की कहानियां (Panchatantra)
यह वह किताब है जिसकी कहानियां नाना-नानी, दादा-दादी अभी भी सुनाया करती हैं। भाषा और जगह के हिसाब से इसके कथनांक में फर्क पड़ा है लेकिन उसकी मूल भावना वहीं है। इस किताब के मूल लेखक पंडित विष्णु शर्मा हैं। इस किताब में जितनी भी कहानियां है सब पेड़-पौधे, जानवर सहित मनुष्य को शामिल कर शिक्षाप्रद बनाया गया है। इसलिए कहा गया है भले आपका बच्चा किताब न पढ़े पर उसे पंचतंत्र की कहानियां जरूर सुनाएं।
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आपको ये जानकर हैरानी होगी कि देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू अपने अति व्यस्त कार्यक्रम से थोड़ी सी फुर्सत पाते थे तो अपनी लाडली बेटी इंदिरा को पत्र लिखा करते थे। पंडित नेहरू के ये पत्र ही थे, जिन्होंने इंदिरा को इतना सशक्त बना दिया कि बड़ी से बड़ी दिक्कतों का सामना करने में उनको तनिक भी मुश्किल नहीं आई। इन पत्रों का संग्रह भी कई किताबों में है। यहां तक आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) के अलावा यह पत्र कई ऑनलाइन बुक्स की (online books)वेबसाइट पर भी उपलब्ध हैं।
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रवीन्द्र नाथ ठाकुर की काबुलीवाला (Kabuliwala)
रवीन्द्र नाथ ठाकुर की किताबों को पढ़ने में भी बच्चों को बहुत ही मजा आएगा और जोश भी। रवीन्द्र नाथ की किताबें बच्चों का मनोरंजन करने के साथ ही उनका मार्गदर्शन भी करती हैं। इनकी सबसे प्रसिद्ध कहानी ‘काबुलीवाला’ है, जिसमें कि एक काबुलीवाला ‘रहमत’ नाम का चरित्र है और दूसरी छोटी बच्ची ‘मनी’ है। इस कहानी को पढ़ते-पढ़ते आप अपनी भावुकता को रोक नहीं पाएंगे। इस कहानी पर इसी नाम से फिल्म भी बन चुकी है जिसके गीत को बच्चे आज भी गुनगुनाते हैं। ऐ मेरे प्यारे वतन..... ऐ मेरे बिछड़े चमन...
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प्रेमचंद की ईदगाह (Idgah)
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प्रेमचंद की ईदगाह (Idgah)
प्रेमचंद ने तो कई ऐसे साहित्य लिखे जिसे बाल साहित्य भी कहा जा सकता है, लेकिन ईदगाह की बात ही निराली है। ईदगाह की बात आते ही दिमाग में नन्हा हमीद उछल-कूद करने लगता है। वैसे उसका चरित्र ऐसा नहीं है। हमीद के किरादार को प्रेमचंद ने ऐसे बाल बुजुर्ग का बुना है जिसकी कल्पना आज के मनोवैज्ञानिक नहीं कर सकते। ईदगाह ऐसी कहानी है जो बच्चों को ऐसे भी सुनाया जा सकता है, उस बाल तर्क से बच्चों को बहुत लाभ मिलेगा जब हामीद अपने चीमटे को कैसे दोस्तों के खिलौनों से श्रेष्ठ साबित करता है।
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Wednesday, 22 June 2016
...किताबें जो आपको बना सकती है सफल
किसी भी मानुष्य के जीवन में किताब वह शस्त्र होता है जिसे वह अपने जीवन में उतारकर अपने जीवन को सफल बना सकता है। चाहे वह आर्थिक रूप से अपने आपको सफल बनाए या आध्यातिमक रूप से उसके लिए शास्त्र (किताब) को शस्त्र के रूप में उपयोग कर सकता है। वैसे किताबें हमेशा से ही आगे बढ़ने में मदद करती हैं, गाइड करती हैं और हमें रास्ता भी दिखाती हैं। यहां तक कि अच्छा इंसान बनने में भी किताबों की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आज हम कुछ ऐसी ही किताबों के बारे में बताएंगे जो आपको आर्थिक रूप से सफल बना सकते हैं। इन्हें लिखने वाले भी बिजनेस और टेक वर्ल्ड के वो लोग हैं, जिन्होंने अपने संघर्ष से उबरकर सफलता के नए पायदान तय किए। यह सभी किताबें किसी भी आॅनलाइन बुक्सस्टोर ( online bookstore ) पर असानी से उपलब्ध है, जहां से आप इसे खरीद (buy books online) सकते हैं।
कैपिटल इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी (capital in the twenty-first century)
लेखक :- थॉमस पिकेटी
लेखक थॉमस पिकेटी की बुक ‘कैपिटल इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी’ बेस्ट सेलर रही है। अपनी सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक में थॉमस पिकेटी ने तर्क दिया कि अर्थव्यवस्था में कुछ अनुचित बिजनस प्रैक्टिस जैसे ग्रोथ बढ़ाने के लिए पूंजी पर रिटर्न देने जैसे रुझान से असमानता की खाई गहरी होती जाती है। इससे असंतोष पैदा होने का खतरा बना रहता है और लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट आती है। बिजनस से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से प्रकाश डाला है। यह किताब 2013 में फ्रेंच भाषा में प्रकाशित हुई। 2014 में यह न्यूयॉर्क टाइम्स की सूची में सर्वाधिक बिकने वाली अंग्रेजी संस्करण की किताब बनीं। जनवरी 2015 तक यह किताब फ्रेंच, अंग्रेजी, जर्मन में 1.5 लाख से अधिक प्रतियां बेच दिया था।
गर्लबॉस (GirlBoss)
लेखक :- सोफिया ऐमोरूजो
गर्लबॉस एक ऐसी लड़की की संघर्ष और अतिमहत्वकांक्षा की हकीकत है जो आज एक कंपनी की फाउंडर और 100 मीलियन डॉलर से अधिक संपत्ति की मालकीन हैं। हम बात कर रहे हैं गर्लबॉस की लेखिका और नास्टी गल की फाउंडर सोफिया ऐमोरूजो की। सोफिया ऐमोरूजो ने गर्लबॉस में आंशिक रूप से इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि किस तरह से उसने अपनी कंपनी शुरू की और उसे बढ़ाया। इसमें एक सफल उद्यमी बनाने के हर तरीके पर प्रकाश डाला है। जब सोफिया 17 साल की थी तब उस नरक से निकलकर यह मुकाम हासिल किया। आज वह 29 की हो गई हैं और कई लोगों की प्रेरणा स्रोत भी हैं।
फिअरलेस जीनियस: द डिजिटल रिवॉल्यूशन इन सिलिकन वैली
(Fearless Genius: The Digital Revolution in Silicon Valley )
लेखक : डॉउग मैनज
इस पुस्तक में टेक की दुनिया के बड़े नाम जैसे स्टीव जॉब्स, बिल गेट्स और जॉन डोएर आदि की जीवन यात्रा का उल्लेख मिलता है। यह पुस्तक टेक आंत्रप्रन्योर या इन्वेस्टर बनने के इच्छुक लोगों के लिए काफी फायदेमंद है। यह वह किताब है जो सिलकन वैली के 17 निर्माताओं की संघर्ष और जुझने की कहानी है। इस किताब में जिन लोगों की जीवन यात्रा को शामिल किया गया है वह आज विश्व अर्थव्यवस्था के बेताज बादशाह हैं। उनकी वह कहानी इस किताब में जिसमें कैसे इन लोगों निराशा से भरे जीवन से खुद को उबारा और डूबने की कगार पर खड़ी कंपनी को आज खरबों का बना दिया।
क्रिऐटिविटी इंक (Creative Inc)
लेखक :- एमी वैलेस एवं एड कैटमल
क्रिऐटिविटी इंक ऐसी पुस्तक है जिसे हर मैनेजरों को पढ़ना चाहिए। इस पुस्तक में बताया गया है कि आप किस तरह से अपनी टीम को नई बुलंदी तक ले जाने में मदद करेंगे और क्वॉलिटी वर्क करेंगे। यह किताब एक ऐसे मैनेजर की है जो अपने कर्मचारियों से अधिक से अधिक काम लेने का इच्छुक है और वह इसके लिए क्या-क्या करता है। इसके लिए वह कर्मचारियों को ट्रिप पर ले जाता है, फिल्म दिखाता है, उन्हीं से आइडिया लेता और कंपनी को ऊंचाई पर ले जाता है।
हाऊ गूगल वर्क्स (How Google Work)
लेखक : एरिक, जॉनथान रोजनबर्ग एवं एलन ईगल
आज गूगल जिस ऊंचाई पर शायद कभी गूगल के फाउंडर और सीईओ ने सोचा होगा। हाऊ गूगल वर्क्स किताब में गूगल के ऐग्जिक्युटिव चेयरमैन और पूर्व सीईओ एरिक शिम्ट एवं प्रॉडक्ट्स के पूर्व एसवीपी जानथन रोजनबर्ग ने इस बात का उल्लेख किया है कि उनको गूगल को बनाने में किस चीज की सीख मिली। उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है कि टेक्नॉलजी ने किस तरह से पावर बैलेंस को शिफ्ट किया है और इस परिवर्तन के अनुसार खुद को कोई व्यक्ति कैसे ढाल सकते हैं। इस किताब में दोनों के उन दिनों की कहानी है जब गूगल गूगल नहीं था। गूगल को यहां तक लाने में दिन रात की मेहनत क्रिएटीविटी और तकनीक मैनेजमेंट का कैसे प्रयोग किया, इस किताब में इसका उल्लेख है।
कैपिटल इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी (capital in the twenty-first century)
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लेखक थॉमस पिकेटी की बुक ‘कैपिटल इन द ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी’ बेस्ट सेलर रही है। अपनी सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक में थॉमस पिकेटी ने तर्क दिया कि अर्थव्यवस्था में कुछ अनुचित बिजनस प्रैक्टिस जैसे ग्रोथ बढ़ाने के लिए पूंजी पर रिटर्न देने जैसे रुझान से असमानता की खाई गहरी होती जाती है। इससे असंतोष पैदा होने का खतरा बना रहता है और लोकतांत्रिक मूल्यों में गिरावट आती है। बिजनस से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर उन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से प्रकाश डाला है। यह किताब 2013 में फ्रेंच भाषा में प्रकाशित हुई। 2014 में यह न्यूयॉर्क टाइम्स की सूची में सर्वाधिक बिकने वाली अंग्रेजी संस्करण की किताब बनीं। जनवरी 2015 तक यह किताब फ्रेंच, अंग्रेजी, जर्मन में 1.5 लाख से अधिक प्रतियां बेच दिया था।
गर्लबॉस (GirlBoss)
लेखक :- सोफिया ऐमोरूजो
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फिअरलेस जीनियस: द डिजिटल रिवॉल्यूशन इन सिलिकन वैली
(Fearless Genius: The Digital Revolution in Silicon Valley )
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इस पुस्तक में टेक की दुनिया के बड़े नाम जैसे स्टीव जॉब्स, बिल गेट्स और जॉन डोएर आदि की जीवन यात्रा का उल्लेख मिलता है। यह पुस्तक टेक आंत्रप्रन्योर या इन्वेस्टर बनने के इच्छुक लोगों के लिए काफी फायदेमंद है। यह वह किताब है जो सिलकन वैली के 17 निर्माताओं की संघर्ष और जुझने की कहानी है। इस किताब में जिन लोगों की जीवन यात्रा को शामिल किया गया है वह आज विश्व अर्थव्यवस्था के बेताज बादशाह हैं। उनकी वह कहानी इस किताब में जिसमें कैसे इन लोगों निराशा से भरे जीवन से खुद को उबारा और डूबने की कगार पर खड़ी कंपनी को आज खरबों का बना दिया।
क्रिऐटिविटी इंक (Creative Inc)
लेखक :- एमी वैलेस एवं एड कैटमल
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हाऊ गूगल वर्क्स (How Google Work)
लेखक : एरिक, जॉनथान रोजनबर्ग एवं एलन ईगल
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Monday, 20 June 2016
भारत में प्रतिबंधित हुर्इं पांच विवादित किताबें ...
इतिहास
के पन्नों को पलटकर अगर देखा जाए तो कई ऐसे पन्ने हैं तो किताबों और लेखकों
पर प्रतिबंध से जुड़े हैं। कई ऐसे भी स्याह पन्ने हैं जो अब पलटने पर एक
दर्द सा उभर आता है। यह उस व्यक्ति पर निर्भर करता है कि उस घटना को वह
कैसे देखता है। वैसे विवादित किताबों को प्रतिबंधित करना कोई नई बात नहीं
है। आज के जमाने में तो सिर्फ किताबों पर ही प्रतिबंध लगाया जाता है, लेकिन
इतिहास बताता है कि लेखकों को उनकी किताबों के साथ जिंदा जला दिया जाता
अगर वह किताब थोड़ी सी भी विवादास्पद होती या राजा के खिलाफ होती। ऐसे
किताबे और लेखक को राजद्रोही माना जाता और उन्हें इसके लिए सजा दी जाती।
अगर भारत की बात करें तो यह भारत में भी परंपरा रही है। मुगल शासनकाल हो या
अंग्रेजों के शासन काल सभी के शासनकाल में लेखकों और किताबों को दबाया
गया। अतीत में जैसे मदर इंडिया किताब से लेकर हाल-फिलहाल में शिवाजी पर आई
लेखक जेम्स लेन की किताब-शिवाजी द हिंदू किंग इन मुस्लिम इंडिया पर देश में
हंगामा हो चुका है। फिलहाल हम भारत में लगाए गए कुछ किताबों पर प्रतिबंध
के बारे में बात करेंगे। हालांकि अब यह सभी किताबें किसी भी ऑनलाइन बुक स्टोर (online bookstore) पर आराम से उपलब्ध हैं। जहाँ से कोईं भी इस किताब को ऑन लाइन खरीद (buy books online) सकता है.
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiU1pEgdw0yjPYih8GS_GXKPtCA3Mg-HufFPCw-oiIeX-8XebCpCXDaIdgXIM0Ee3XAx2iIFpixRFBAjyK1JCfgZ7fnUL6rbR9Ilgcl4tWfeqr977PFL4TV-hkCxX64TEOEURmR6VdUf8s/s200/9780143116691-us-300.jpg)
'द
हिंदूज-एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री' जैसा कि नाम से ही साफ है, किताब हिंदू
धर्म पर दूसरा नजरिया पेश करने का दावा करती है। इसे लिखा है अमेरिकी
लेखिका वेंडी डोनिगर ने। वो भारतीय विषयों की अमेरिकी विद्वान हैं। लेकिन
विरोधियों का कहना है कि उनकी किताब में विद्वता जैसी कोई बात नहीं। किताब
में तथ्यात्मक गलतियां हैं। ये हिंदू धर्म की भावनाओं को आहत करती है।
फरवरी 2014 में धार्मिक संगठनों के विरोध के बाद पिछले साल पेंगुइन इंडिया
ने वेंडी डोंनिगर की किताब ‘द हिंदूज: एन अल्टरनेटिव हिस्ट्री’ को वापस ले
लिया। लेकिन आज के इंटरनेट के जमाने में इसे रोकना मुश्किल है। पढ़ने वाले
इसे या तो आॅनलाइन बुक्स स्टोर से मंगा लेंगे या ईबुक खरीद लेंगे।
द सैटनिक वर्सेज (The setenic verses)
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एन एरिया आॅफ डार्कनेस (An Area Of Darkness)
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नाइन आॅवर्स टू रामा (Nine hours to Rama)
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द फेस आॅफ मदर इंडिया
अमेरिकी
इतिहासकार कैथरीन मायो 1927 में अपनी किताब ‘द फेस आॅफ मदर इंडिया’ के
प्रकाशित होने के बाद राजनीतिक विवादों के घेरे में आ गई। इस किताब में
कैथरीन ने कहा था कि भारत स्वराज के काबिल नहीं है। महात्मा गांधी ने इस
किताब को ‘रिपोर्ट आॅफ अ ड्रेन इंस्पेक्टर’ कहा था। इस किताब में कैथरीन
मेयो ने भारतीय समाज, धर्म और संस्कृति पर हमला किया है। यह किताब
अंग्रेजों से स्व-शासन और आजादी के लिए भारतीय मांगों के खिलाफ लिखा गया
था। पुस्तक भारत की महिलाओं को अछूत, पशु, गंदगी बताया गया था। किताब का एक
बड़ा हिस्सा भारतीय लड़कियों के विवाह से संबंधित था।
Wednesday, 8 June 2016
Top 7 Best Selling Books of All Times
Too little time and too much to read, this is a common problem that each and every book lover faces.
Well, we have just tried to make an comprehensive list of 7 such books which created ripples when they were published and their charm has not eluded even after centuries!
Yes, centuries, and trust us they even bestsellers like Harry Potter and Twilight!!
![](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjz2qSWTqF2BdlEb3xi8hH8-07eUmIyXrTzjy-4iu_qNrXw-xKdffrq8oW7VozBfRxX-jP7-pmpgPOS9aXGCbNDFMd0zyHl8PQkqRV65cp7I5rjJ6kt35fCqZ2ALZ-mikPWK4Pz6kFwwBc/s200/tale-of-two-cities-book-cover.jpg)
A Tale of Two Cities
A Tale of Two Cities (1859) is a novel written by Charles Dickens. It has been set in London and Paris before and during the French Revolution. The novel throws light on the plight of the French peasantry before the revolution. Depicting the contemporary times the novel opens with lines, ' "It was the best of times, it was the worst of times...". This classic novel is one of the best-selling novels ever written, with over 160 million copies sold. A Tale of Two Cities is one of the few works of historical fiction by Charles Dickens.
The Lord of the Rings
The Lord of the Rings is an epic-fantasy novel written by J. R. R. Tolkien. The story began as a sequel to Tolkien's 1937 fantasy novel The Hobbit, but eventually developed into a much larger work. The Lord of the Rings is one of the best-selling novels ever written, with over 150 million copies sold.The title of the novel refers to the story's main antagonist, the Dark Lord Sauron, who had in an earlier age created the One Ring to rule the other Rings of Power as the ultimate weapon in his campaign to conquer and rule all of Middle-earth. From quiet beginnings in the Shire, a hobbit land not unlike the English countryside, the story ranges across Middle-earth, following the course of the War of the Ring through the eyes of its characters, not only the hobbits Frodo Baggins, Samwise "Sam" Gamgee, Meriadoc "Merry" Brandybuck and Peregrin "Pippin" Took, but also the hobbits' chief allies and travelling companions: the Men Aragorn son of Arathorn, a Ranger of the North, and Boromir, a Captain of Gondor; Gimli son of Glóin, a Dwarf warrior; Legolas Greenleaf, an Elven prince; and Gandalf, a Wizard.
The Little Prince
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Harry Potter and the Philosopher's Stone
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And Then There Were None
Dream of the Red Chamber
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She: A History of Adventure
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Thursday, 2 June 2016
क्या ई-बुक का आना किताबों की दुनिया में क्रांति है.....
सूचना क्रांति के बाद हुए व्यापक बदलाव ने हमारी दुनिया को तो बदल ही दिया है। वहीं इस क्रांति ने सभी स्तर पर कई सवाल भी खड़े किए है जिसका जवाब देना मुश्किल होता है। इसके व्यापक रूप से गंभीर परिणाम हुए। गंभीर का आशय है कि अच्छे में भी बुरे में भी। समाजिक प्रभाव के साथ-साथ यह स्वास्थ्य, शिक्षा, बेरोजगारी, संचार सहित कई हिस्सों को प्रभावित किया है। इसमें एक हिस्सा किताबों का भी है। जिस तरह से किताबों के आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) खुल रहे हैं और किताबें बिक रही हैं उसने तो प्रकाशकों के लिए कई दरवाजे खोल दिए हैं, वह भी फिलहाल के लिए, क्योंकि इसके बाद वाले बदलाव के लिए कौन प्रकाशक तैयार यह देखना अभी बाकी है। वह दौर होगा ई-बुक का, जिसको लेकर यह सवाल खड़े किए जा रहे हैं कि क्या ई-बुक (e book) का आना किताबों की दुनिया में क्रांति है?
पाठक लेखक सभी के लिए सुविधा जनक
वैसे ई-बुक में साहित्य से लेकर पाठ्य-सामग्री की उपलब्धता ने लेखकों, प्रकाशकों और पाठकों के परंपरागत अनुभवों और संबंधों में आमूल-चूल बदलाव को अंजाम दिया है। इस रूप में अब कोई भी किताब प्रिंट फॉर्मेट के अलावा डिजिटल माध्यमों से भी पाठकों तक पहुंच रही हैं। आॅन लाइन बुक्स स्टोर के आने से पहले छपी हुई किताबों की बिक्री और उन्हें पाठकों तक आसानी से पहुंचाना लेखकों और प्रकाशकों के लिए हमेशा से बड़ी चुनौती रही है। पाठक के हाथ में किताब के आने तक उसकी लागत भी बढ़ जाती है और मूल्य अधिक होने के बावजूद लेखक को मिलनेवाली रॉयल्टी भी पर्याप्त नहीं हो पाती। लेकिन ई-बुक ने बहुत हद तक इस समस्या का समाधान कर दिया है। डिजिटल फॉर्मेट में होने के कारण प्रिंट की तुलना में किताब की लागत बहुत कम हो जाती है। ई-बुक को आॅनलाइन बुक्स स्टोर पर बाई बुक्स आॅनलाइन (buy books online) अपलोड कर दिया जाता है, जहां से मामूली कीमत चुका कर कोई भी पाठक दुनिया के किसी भी हिस्से में उसे डाउनलोड कर सकता है। किताब की कीमत का बड़ा हिस्सा रॉयल्टी के रूप में सीधे लेखक के पास जाता है।
प्रकाशन के समीकरणों में भी बदलाव
परंपरागत रूप में किसी लेखक को किताबें छपवाने के लिए स्थापित प्रकाशक के पास जाना पड़ता है। प्रकाशक लेखक की लोकप्रियता और बिक्री की संभावनाओं के आधार पर छापने या न छापने का फैसला करता है। यही कारक रॉयल्टी की रकम का निर्धारण भी करते हैं। अमूमन नए लेखकों के लिए छपना एक कठिन और लंबी प्रक्रिया होती है। लेकिन, डिजिटल तकनीक ने लेखक को छपने, कीमत और रॉयल्टी तय करने, पाठक से सीधे जुड़ने का प्लेटफॉर्म मुहैया कराया है। ई-बुक के फॉर्मेट ने नवोदित लेखकों को प्रकाशन-जगत में अपनी दखल देने का एक अवसर भी उपलब्ध कराया है। अब उन्हें प्रकाशकों की चिरौरी करने और अपने हिस्से की रॉयल्टी के लिए हाथ पसारने की जरूरत नहीं है।
हिंदी ई-बुक्स की आमद
तीन साल पहले तक इंटरनेट पर हिंदी ई-बुक्स (hindi books online) की स्तरीय साहित्यिक और सांस्कृतिक पत्रिकाएं उपलब्ध नहीं थीं। लेकिन अब वह हर आॅनलाइन बुक्स स्टोर पर असानी से उपलबध हैं। आजकल तो नए छपने वाले हिन्दी या इंग्लिश साहित्य के अब तीन फॉर्मेट हो गए हैं, हार्डबाउंड, पेपर बैक और ई-बुक। क्योंकि प्रकाशक भी जमाने की मिजाज को समझते हुए यह फैसला ले रहे हैं। अब तो हिंदी के अलावा कन्नड़, पंजाबी और तेलुगु साहित्य के लिए भी इस सुविधा का विस्तार किया जा रहा है।
Tuesday, 24 May 2016
आॅनलाइन शॉपिंग में यंगस्टर्स की डिमांड किताब और गैजेट्स
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यह है टॉप शहर
रैंक शहर सर्वे में शामिल किशोरों का%
1. दिल्ली 79.4
2. मुंबई 74.3
3. भुवनेश्वर 74.2
4. लखनऊ 72.1
आॅनलाइन शॉपिंग में क्या खरीदते हैं यंगस्टर्स
रैंक समान सर्वे में शामिल किशोरों का%
1. गैजेट्स 64.5
2. किताब 61.2
3. खिलौने 10.2
Friday, 20 May 2016
किताबों का आॅनलाइन बिजनेस और हिन्दी-अंग्रेजी की किताबें
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भारत में आॅनलाइन कारोबार लगभग 1.5 लाख करोड़ रु. सालाना से ऊपर पहुंच चुका है। इसमें किताबों के हिस्से का आंकड़ा तो ठीक-ठीक पता नहीं पर अंग्रेजी किताबों की बिक्री 4-5 साल पहले ही उत्साहजनक स्तर पर पहुंच चुकी थी। हिंदी में अब जाकर स्थिति थोड़ी चर्चा के काबिल बनी है। यह बात हर प्रकाशक मान रहा है कि आॅनलाइन सेल बढ़ रही है। किताबों की बेहतर आॅनलाइन बुक (online book) सेल के अपने फंडे हैं। मसलन, लेखक का चर्चित होना, उसका खुद आगे बढ़कर सोशल साइट्स पर किताब का प्रमोशन करना और प्रकाशक का भी आक्रामक रुख रखना। अंग्रेजी में चेतन भगत, रश्मि बंसल, अमीष त्रिपाठी जैसे लेखकों की किताबों के साथ यही होता रहा है। भगत के नए उपन्यास रिवोल्यूशन 20-20 के छपकर आने से पहले ही, बताते हैं कि आॅनलाइन 50,000 प्रतियों से ज्यादा के आॅर्डर मिल गए थे। हिंदी में यह स्थिति अभी अपवाद है।
अंग्रेजी और हिंदी में आॅनलाइन सेल के फर्क को जानकार भी रेखांकित करते हैं। खैर, इसमें अभी थोड़ा समय लगेगा। इसकी वजहें हैं। अधिकांश प्रकाशकों का कहना है कि हिंदी क्षेत्र में इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की उपलब्धता के कम होने के अलावा उसके उपयोग में हिचक भी है। आम राय यही बनती दिखती है, जैसा कि ‘हिंदी में संभावनाएं बहुत हैं’ पर उनके साकार होने में अभी समय लगेगा।
Friday, 29 April 2016
पांच साल में 100 अरब डॉलर का होगा ई-कॉमर्स कारोबार
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Wednesday, 20 April 2016
‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर कुछ नया करने का प्रयास करें
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‘विश्व पुस्तक दिवस’ का उद्देश्य विश्व भर के लोगों को, और खासकर युवाओं को, पठन-पाठन का आनंद उठाने की प्रेरणा देना है। साथ ही इस दिवस का उद्देश्य उन सभी लेखकों के लिए आदर का भाव जगाना है, जिन्होंने मानवता की सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति में सहयोग दिया है। इसलिए 23 अप्रैल को विश्व साहित्य के प्रतीक दिवस के रूप में ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाया जाता है। इसी दिन वर्ष 1616 में सवंर्तेस, शेक्सपियर और इन्का गर्सिलासो दे ला वेगा की मृत्यु हुई थी। यह दिन कई और प्रमुख लेखकों का भी जन्म या फिर मरण दिवस है। विश्व भर के लेखकों को सम्मान देने के लिए इस दिन का चयन किया जाना एक स्वाभाविक कदम था। इसी दिशा में कदम उठाते हुए, यूनेस्को ने विश्व पुस्तक और कॉपीराइट दिवस की स्थापना की। लेकिन यूनेस्को के उद्देश्य से पूरा विश्व ही भटक गया था। लोग किताबों से दूरी बनाने लगे थे। लेकिन आॅनलाइन बुक्स (online books) स्टोर्स ने इस दूरी को कम करने में बहुत ही मदद की है। अब लोगों कि पहुंच किताबों तक आसानी से और लोग आनलाइन बुक्स स्टोर से किताबें खूब खरीद (buy books online) रहे हैं। वैसे इसके लिए कुछ अलग से करने की जरूरत है। वैसे किताबें बच्चों में अध्ययन की प्रवृत्ति, जिज्ञासु प्रवृत्ति, सहेजकर रखने की प्रवृत्ति और संस्कार रोपित करती हैं। पुस्तकें न सिर्फ ज्ञान देती हैं, बल्कि कला, संस्कृति, लोकजीवन, सभ्यता के बारे में भी बताती हैं। ऐसे में पुस्तकों के प्रति लोगों में आकर्षण पैदा करना जरूरी हो गया है। इसके अलावा तमाम बच्चे गरीबी के चलते भी पुस्तकें नहीं पढ़ पाते, इस ओर भी ध्यान देने की जरूरत है। बच्चों के लिए विभिन्न जानकारियों व मनोरंजन से भरपूर पुस्तकों की प्रदर्शनी जैसे अभियान से उनमें पढ़़ाई की संस्कृति विकसित की जा सकती है।
वैसे इंसान के स्कूल से आरंभ हुई पढ़ाई जीवन के अंत तक चलती है जब तक उसकी आंखे धुंधली नहीं हो जाती। लेकिन आज कम्प्यूटर और इंटरनेट के प्रति बढ़ती दिलचस्पी के कारण पुस्तकों से लोगों की दूरी घटती जा रही है। आज के युग में लोग इंटरनेट के माध्यम से किताबें खरीद रहे हैं। लेकिन दूसरी ओर कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि इंटरनेट के कारण किताबों के प्रति लोगों का रुझान कम हुआ है और किताब और किताब प्रेमियों के बीच यह दूरी और बढ़ी है। यही कारण है कि लोगों और किताबों के बीच की दूरी को पाटने के लिए यूनेस्को ने ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाने का निर्णय लिया। पहली बार 23 अप्रैल, 1995 को ‘विश्व पुस्तक दिवस’ मनाया गया था। बाद में यह हर देश में व्यापक होता गया। किताबों का हमारे जीवन में क्या महत्व है, इसके बारे में बताने के लिए ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर विभिन्न शहरों में कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
वैसे भारत में ‘सभी के लिए शिक्षा कानून’ को इसी दिशा में देखा जा रहा है। जागरुकता अभियान लोगों में पुस्तक प्रेम को जागृत करने के लिए मनाये जाने वाले ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर जहां स्कूलों में बच्चों को पढ़़ाई की आदत डालने के लिए सस्ते दामों पर पुस्तकें बांटने जैसे अभियान चलाये जा सकते हैं, वहीं स्कूलों या फिर सार्वजनिक स्थलों पर प्रदर्शनियां लगाकर पुस्तक पढ़ने के प्रति लोगों को जागरूक किया जा रहा है। स्कूली बच्चों के अलावा उन लोगों को भी पढ़़ाई के लिए जागरूक किया जाना जरुरी है जो किसी कारणवश अपनी पढ़़ाई छोड़ चुके हैं। पुस्तकालय इस सम्बन्ध में अहम भूमिका निभा सकते हैं, बशर्ते उनका रख-रखाव सही ढंग से हो और स्तरीय पुस्तकें और पत्र-पत्रिकाएं वहां उपलब्ध कराई जाएं। इस ‘विश्व पुस्तक दिवस’ पर आप भी संकल्प करें की लोगों को किताबों की प्रति रुचि बढ़ाने के लिए कई प्रयास करेंगे।
Sunday, 17 April 2016
Yourbookstall.com I Buy Books Online, Publish Your Book, Sell Old Books: भारत में तेजी से फलता-फूलता ई-कमर्स
Yourbookstall.com I Buy Books Online, Publish Your Book, Sell Old Books: भारत में तेजी से फलता-फूलता ई-कमर्स: ब्रिटेन माइकल अलड्रीच ने 1979 में जब ई-कमर्स का कॉन्सेप्ट दिया होगा तो उसने भी नहीं सोचा होगा की पूरी दुनिया का कमर्स ई-कमर्स की ओर देखने ल...
Saturday, 16 April 2016
ई-बुक से होंगे बच्चों के कंधे हल्के
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Tuesday, 5 April 2016
जेल में लिखी गर्इं किताबें...
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दूसरी ओर कई अपराधियों ने भी किताबें लिखी हैं। हाल ही में उत्तर प्रदेश के एक अपराधी ने जेल में ही 9 किताबें लिख डाली थी। इसके अलावा भी कई ऐसे लोगा हैं जिन्होंने जेल में रहते हुए किताबें लिखी हैं। फरवरी में ही पिछले दो सालों से जेल की छोटी सी सेल में बेहद मामूली चीजों के सहारे जीवन बीता रहे सहारा प्रमुख सुब्रत राय की किताब का विमोचन जेल में ही हुआ। किताब के विमोचन के लिए उन्होंने अपने कंपनी सहारा का 39वां स्थापना दिवस चुना। सहारा प्रमुख ने तिहार जेल में न्यायिक हिरासत में रहते हुए अपनी तीन किताबों की सीरीज ‘थॉट फ्रॉम तिहार’ के पहले पार्ट ‘लाइफ मंत्रास’ को लिखा है।यह किताबें आॅनलाइन बुक्स (online books) स्टोर पर खूब बिक रही हैं और लोग भी इसे बाई बुक्स आॅनलाइन (buy books online) खूब खरीद रहे हैं। दूसरी ओर जेल में किताब लिखने को लेकर संजय दत्त भी चर्चा में हैं। मार्च में रिहा होने के बाद उन्होंने यह बात बताई। जेल में संजय दत्त ने अपनी दिनचर्या के अलावा अपने जीवन के अनुभवों को लिखने में भी उन्होंने खुद को व्यस्त रखा। अब उनके इन अनुभवों ने एक किताब का रूप ले लिया है। मुंबई बम विस्फोट मामले में जेल की सजा काटने के बाद हाल में रिहा हुए 56 वर्षीय अभिनेता ने दो कैदियों के साथ मिलकर 500 से अधिक ‘शेर’ लिखे हैं और अब वह अपने इस काव्य संग्रह को ‘सलाखें’ नाम की एक किताब के रूप में प्रकाशित करवाना चाहते हैं। दत्त ने कहा, मैंने कुछ लिखा है और मैं इस किताब ‘सलाखें’ को जारी करूंगा। हम इसे कुछ लोगों (प्रकाशकों) को दिखाएंगे। जिशान कुरैशी, समीर हिंगल नाम के दो कैदियों के साथ मैंने 500 शेर लिखे हैं। वे दोनों रेडियो स्टेशन में मेरे साथ थे। ये सभी शेर हिंदी में लिखे गये हैं।